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December 16, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी(सवाल उठाते हैं पालकी नहीं)

प्रधानमंत्री मोदी का सेल्फ गोल है संसद के भीतर वंदेमातरम पर चर्चा करवाना

PM मोदी आज खोलेंगे 'वंदे मातरम' से जुड़े वो राज, जिनका कांग्रेस से है  पुराना नाता, 1937 के जख्मों पर छिड़ेगी नई बहस - News18 हिंदी

जिस दिन वंदेमातरम देश की शिराओं में दौड़ने लगेगा उसी दिन सभी के मुगालते खत्म हो जायेंगे, जिस दिन लोग कार्पोरेट, सत्ता और संविधान के भीतर देश की मौजूदा परिस्थितियों को समझ जायेंगे उस दिन वंदेमातरम गान संसद में नहीं बीच चौराहे पर होगा

"हे माँ तेरी धरती जल से भरपूर है। फल - फूल से लदी हुई है। मलय पर्वत की ठंड़ी सुगंध से शीतल है। खेतों में लहलहाती फसल से आच्छादित है। तेरी रातें चांदनी से नहा कर पुलकित हो उठती है और वृक्ष खिले फूलों और पत्तों से सजे रहते हैं। तू मुस्कान बिखेरने वाली, मधुर वाणी बोलने वाली, सुख देने वाली है। तेरे करोड़ों पुत्रों के गले से उठी आवाज गगन में गूंजती है और करोड़ों भुजाओं में तलवारें और अस्त्र-शस्त्र चमकते हैं। कौन कहता है कि तू निर्बल है। माँ तू अपार शक्ति है। संकट से पार लगाने वाली है और शत्रुओं का नाश करने वाली है। तू ही ज्ञान है, धर्म है, हृदय है और तू ही जीवन का सार है। तू प्राण है। भुजाओं की शक्ति है और हृदय की भक्ति है। हम तुझे ही पूजते हैं। हे माँ तू ही दशों अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाली माॅं दुर्गा है। कमल के आसन पर विराजमान माॅं लक्ष्मी है। तू माॅं सरस्वती है। हे निर्मल माॅं मैं तुझे प्रणाम करता हूं" । वंदेमातरम का यह हिन्दी भावानुवाद श्री अरविंद घोष ने किया है जिनकी पहचान एक योगी और दार्शनिक के तौर पर है। यानी भारत की ताकत है, भारत की भूमि की ताकत है, देश के भीतर समाये हुए प्राकृतिक परिस्थितियों से जो उर्जा मिलती है लोगों को।

लेकिन इस दौर में सब कुछ खत्म, ध्वस्त कर दिया गया है। सरकार न शुध्द पानी दे पा रही है न वायु। न ही जमीन की उर्बरा दे पाने की स्थिति में है न ही किसानों के साथ खड़ी हो पा रही है। न ही संघर्ष के आसरे देश के भीतर उठते हुए सवालों का जवाब दे पा रही है। संसद के गलियारों में सिर्फ उन्हीं मुद्दों को चर्चा के क्यों खोजा जाता है जो चर्चा राजनीतिक तौर पर राजनीतिक दायरे में देश की जनता को लाकर खड़ा करना चाहती है। यानी भारत की संसद के कोई सरोकार देश के साथ हैं ही नहीं। संसद में बैठे सांसदों को जनता चुनती जरूर है तो उस पर भी कब्जा हो गया है। पता नहीं वोट गिने भी जाते हैं या नहीं। मगर सांसदों का देश से तो छोड़िए अपने ही संसदीय क्षेत्र की उस जनता से जो उसे वोट देती है उससे भी कोई जुड़ाव नहीं रहता है। हाल ही में जब देश का आम नागरिक हवाई यात्रा को लेकर परेशान है। सांसदों के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है क्योंकि उनकी हवाई यात्रा के लिए तो 24 × 7 चार्टर प्लेन मौजूद रहते हैं। सबसे ज्यादा दिल्ली और मुंबई में उसके बाद हैदराबाद और विशाखापट्टनम का नम्बर आता है। देश के राज्यों की राजधानी में भी व्यवस्था रहती ही है चार्टर प्लेन की। भारत के भीतर तकरीबन 17 हज़ार चार्टर प्लेन मौजूद हैं। राजनीति को उड़ान भरने की व्यवस्था है तो फिर क्यों कर सरोकार रखें आम आदमी से। वंदेमातरम की चर्चा के बीच में हवाई जहाज का जिक्र क्यों ? हवाई जहाज का जिक्र इसलिए कि जेब में पूंजी रखे हुए लोग भी तो समझें कि उनसे भी देश की सत्ता के कोई सरोकार नहीं है।

PM Modi Parliament Speech: Modi ने वंदे मातरम पर बोलते हुए, अंग्रेजों को  सुनाया, विपक्ष को भी लपेटा - YouTube

सत्ता जब वंदेमातरम पर चर्चा कर रही है तो उस चर्चा के साथ वही राजनीति हिलोरें मार रही है जिस राजनीति के आसरे उसको सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बन सके। इसलिए कोई उसमें बंगाल में होने वाले चुनाव की राजनीति को खोज रहा है। कोई सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ रहा है। कोई नेशनलिज्म जगाना चाहता है। कोई देश के मूलभूत मुद्दों से देश को ही दरकिनार करने की कोशिश कर रहा है। तो कोई अतीत के नायकों को खारिज कर रहा है। कोई अतीत की उन परिस्थितियों से मौजूदा वक्त की परिस्थितियों को यह कह कर बेहतर बताने से हिचक नहीं रहा है कि असल रामराज्य तो अभी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के भीतर वंदेमातरम पर हो रही चर्चा की शुरुआत करते हुए तकरीबन एक घंटे तक भाषण दिया। उसमें 121 बार वंदेमातरम, 50 बार कंट्री याने देश शब्द, 35 मर्तबा भारत शब्द, 34 बार अंग्रेज शब्द, 17 बार बंगाल का जिक्र, 10 बार बंकिम चंद्र चटर्जी का नाम, 7 बार जवाहरलाल नेहरू का नाम, 6 मर्तबा महात्मा गांधी का नाम लिया गया। उस भाषण में 5 बार मुस्लिम लीग, 3 बार जिन्ना, 3 बार संविधान का का नाम भी लिया गया। 2 मर्तबा मुसलमान, 3 बार तुष्टीकरण, 13 मर्तबा कांग्रेस का भी जिक्र किया गया लेकिन एक बार भी जनसंघ, संघ यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम नहीं लिया गया। आखिर क्यों ? जबकि भाषण तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दे रहे थे जो खुद संघ के स्वयंसेवक, प्रचारक रह चुके हैं आज भी उनका संघ से जुड़ाव बरकरार है। देश के भीतर तिरंगा के साथ ही भगवा भी लहराते हैं। अपने हर भाषण के बाद वंदे शब्द का इस्तेमाल उसी तर्ज पर करते हैं जैसे कोई स्वयंसेवक भाषण देता है।

वंदेमातरम पर चर्चा के दौरान पूरे सदन (जिसमें आसंदी भी शामिल है) ने अपनी अज्ञानता, अपरिपक्वता का परिचय दिया है। सत्ता पक्ष ने तो आज जिस तरह से वंदेमातरम को अपमानित किया है उसकी मिशाल शायद ही मिले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस समय सदन में प्रवेश कर रहे थे और सांसद फूहड़ता के साथ वंदेमातरम का नारा लगा रहे थे। वंदेमातरम का गायन किया जाता है और जब - जब वंदेमातरम का गायन होता है या किया गया है चाहे वह 1896 में कोलकाता में हुआ कांग्रेस का अधिवेशन हो जिसमें रविंद्रनाथ टैगोर ने गायन किया था या फिर संविधान सभा की शुरुआत रही हो तब सभी खामोशी के साथ खड़े होकर गायन करते थे लेकिन सत्तापक्ष इतना अहंकारी हो गया कि उसने वंदेमातरम को नारे में तब्दील कर दिया है । विपक्ष हूट करता रहा और आसंदी एक जरखरीद गुलाम की तरह चुपचाप बैठी रही। संविधान सभा की भाषा, संविधान सभा के भीतर तर्क, उसमें होने वाली बहस और उस बहस के बाद बने संविधान (जिसमें भारत के हर प्रांत के लोगों की मौजूदगी थी) जिसमें यह मानकर चला गया कि देश का एक संविधान होगा। उस संविधान के आसरे सरकारें चलेंगी। उस सरकार के हिस्से में कौन सा काम है निर्धारित किया गया। पार्लियामेंट को कैसे चलाना है यह भी बताया गया। लेकिन उसमें इस बात का जिक्र नहीं किया गया क्योंकि किसी ने भी नहीं सोचा था कि कभी सत्ता में ऐसे लोग भी आयेंगे जो देश के भीतर आजादी से पहले लिखी गई रचनाओं को ही विवादित बना देंगे। 1950 में संविधान को लागू किया गया। किसने सोचा था कि देश का हर संवैधानिक संस्थान राजनीतिक मुट्ठी में इस तरीके से समा जायेगा जहां पर देश को चलाने के लिए जो संसद का काम है उसे ही भूल जायेंगे। यानी गवर्नेंस का मतलब क्या होता है, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का क्या मतलब है इस संसद को पता नहीं है। संसद और सांसद को यह भी पता नहीं है कि जिन बातों का जिक्र वो कर रहे हैं उन बातों को लागू कराना भी उनकी ही जिम्मेदारी है।

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वंदेमातरम 1875 में लिखा गया उसके बाद आनंदमठ नामक उपन्यास की रचना की गई। जिसमें वंदेमातरम को डाल कर 1882 में छापा गया। इसके बाद बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की यह रचना एक कालजयी उपन्यास के तौर पर भारत के मानस पटल पर छा गया। तो जाहिर है कि वंदेमातरम भी भारत के जहन में आया। रविंद्रनाथ टैगोर ने 1896 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में इसका गायन किया था। उसके बाद 1947 में संविधान सभा की बैठक की शुरुआत ही सुचेता कृपलानी के वंदेमातरम गायन से हुई थी।1950 में संविधान लागू होने पर वंदेमातरम को राष्ट्रीय गीत बनाया गया और इसे राष्ट्रीय गान जन-गण-मन के समानांतर दर्जा दिया गया। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदेमातरम की रचना कर जिस भारत की कल्पना की, जिसका गायन करते हुए रविंद्रनाथ टैगोर ने सोचा समझा, जिस गीत के आसरे संविधान सभा ने संविधान बनाया और 2025 में सत्ताधारी पार्टी इस बात का जिक्र कर रही है कि उस दौर के नायक आज के दौर के खलनायक हैं तो यह मान कर चलिए कि इससे ज्यादा विभत्स कुछ हो नहीं सकता है। वंदेमातरम की रचना के 150 बरस होने पर संसद के भीतर जो चर्चा हो रही है उसका एक सच यह है कि 100 बरस होने पर देश में इमर्जेंसी लगाकर संविधान को हाशिये पर धकेल दिया गया था। दूसरा सच यह है कि 109 बरस में देश के भीतर सिख्खों का नरसंहार हुआ था तो 127 बरस होने पर गुजरात में भी नरसंहार हुआ था।

किस - किस पत्थर को उठाकर उसके नीचे झांक कर देखिएगा। क्या वंदेमातरम को याद करते हुए मौजूदा देश की त्रासदी या उसके घाव से रिसते हुए खून और पस (मवाद) को देख कर शांति महसूस की जा सकती है और अगर की जा सकती है तो फिर नरपिशाच और हममें कोई अंतर नहीं है। मगर मौजूदा राजनीति की यही विधा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वंदेमातरम के पीछे खड़े होकर अपनी राजनीति साधने के लिए जिस तरीके से एक चौथाई सच और तीन चौथाई झूठ को परोसा उससे एक बार फिर उनकी ओछी राजनीति नग्न हो गई।  विपक्ष को खुलकर मोदी, बीजेपी और संघ की कलई खोलने का मौका दे दिया। अखिलेश यादव ने तो खुलकर कहा कि आप (बीजेपी) राष्ट्रवादी नहीं राष्ट्रविवादित हैं। प्रियंका गांधी ने तो यहां तक कहा कि जिस नेहरू को आप खलनायक कह रहे हैं वो जितने साल (12) से आप सत्ता में हैं उतने साल उन्होंने देश की आजादी के आंदोलन में भाग लेते हुए जेल में बिताए हैं और आजादी के बाद 17 साल तक प्रधानमंत्री रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वंदेमातरम की आड़ में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का एक ऐसा खतरनाक खेल खेलना शुरू किया है जहां अब ध्रुवीकरण करने के लिए हिन्दू - मुसलमान की जगह राष्ट्रवाद का नाम लिया जा रहा है। संस्थागत तरीके से इतिहास को बदलने के लिए झूठ का मुलम्मा चढ़ाने की कोशिश की जा रही है। एसआईआर के काम में लगे बीएलओ की मौतें, इंडिगो संकट, दिल्ली में हुआ आतंकी हमला, प्रदूषण, रूपये का लगातार हो रहा अवमूल्यन, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, मंहगाई, बेरोजगारी, महिला सुरक्षा, किसान - मजदूर हित, युवाओं में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति आदि ऐसे ढ़रों मुद्दे हैं जिन पर संसद के भीतर बहस होनी चाहिए। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद के भीतर 150 बरस पहले लिखे गये गीत वंदेमातरम पर चर्चा करा रहे हैं। देखा जाय तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह दुस्साहस अकारण नहीं है। वे तो हरहाल में उन ताकतों से मुक्त होना चाहते हैं जिनकी बदौलत संविधान सुरक्षित है, बचा हुआ है। क्योंकि यही वह संविधान है जो देश में तानाशाही कायम नहीं होने दे रहा है। लोगों को हिम्मत देता है कि अगर उन्हें सरकार का कोई फैसला पसंद न आये या उसमें उन्हें अपना हित खतरे में पड़ता हुआ दिखता है तो उसके खिलाफ आवाज उठायें।

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संविधान की दी हुई ताकत की बदौलत ही किसानों ने मोदी सरकार द्वारा लाये गए किसान विरोधी कानूनों का विरोध किया था और मोदी सत्ता को तीनों कृषि कानून वापस लेने मजबूर होना पड़ा था। हाल ही में लाये जा रहे संचार साथी ऐप प्री - इंस्टाल करने का फैसला टालना पड़ गया। वक्फ़ संशोधन अधिनियम को संसदीय समिति को भेजना पड़ा। मतलब मोदी सरकार को अपने फैसलों से पीछे हटना पड़ रहा है और यही बात उसे खटक रही है। वंदेमातरम की चर्चा में पीएम मोदी ने जिस तरह का भाषण दिया वह वंदेमातरम का मुखौटा लगाकर देश को नुकसान पहुंचाने वाली ताकतों को बढ़ावा देने वाला है। लगता है कि नरेन्द्र मोदी उसी लकीर को फिर से खींचने की कोशिश कर रहे हैं जो कभी उनके पुरखों यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा ने खींची थी। आजादी की लड़ाई वाले इतिहास में तो कहीं भी इस बात के सबूत नहीं मिलते कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा ने आजादी की लड़ाई में कोई योगदान दिया हो, बल्कि इस बात के सबूत जरूर मिलते हैं कि वी डी सावरकर ने सजा से बचने के लिए अंग्रेजों से माफी मांगी थी और सेवा का वचन दिया था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग अंग्रेजों की मुखबिरी किया करते थे। जनता को अंग्रेजी फौज में भर्ती होने के लिए उकसाते थे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने लंबे भाषण में यह तो बताया कि जवाहरलाल नेहरू मुस्लिम लीग के सामने झुकते थे लेकिन यह नहीं बताया कि 1937 में ब्रिटिश इंडिया के कुल 11 राज्यों के हुए चुनाव में मुस्लिम लीग एक भी राज्य में नहीं जीत पाई जबकि कांग्रेस ने बहुमत के साथ 7 राज्यों में सरकार बनाई थी । मोदी ने यह भी नहीं बताया कि 1941-42 में सावरकर की हिन्दू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर तीन राज्यों में सरकार बनाई थी। मोदी ने इस बात का भी जिक्र नहीं किया कि जब देश आजाद हुआ तो 15 अगस्त 1947 की आधी रात को संविधान सभा में श्रीमती सुचेता कृपलानी ने वंदेमातरम का गायन किया था। 24 जनवरी 1950 के दिन वंदेमातरम को राष्ट्रगीत घोषित किया गया था तब कांग्रेस की सरकार थी और जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। कांग्रेस के अधिवेशन में आज भी वंदेमातरम का गायन होता है। यह भला मोदी अपने मुंह से कैसे बोल सकते थे। मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रह चुके हैं और बतौर स्वयंसेवक अभी संघ से उनका जुड़ाव है तो वे अपने भाषण में इस बात का खुलासा तो कर ही सकते थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आजादी के पहले और आजादी के बाद कई दशकों तक तिरंगे से परहेज क्यों किया तथा वंदेमातरम को अपना गीत क्यों नहीं बनाया। यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सही मायने में पूरी ईमानदारी के साथ इतिहास को सुधारने की मंशा रखते हैं तो उसकी शुरुआत उन्हें अपने मातृ - पितृ संगठनों से करनी चाहिए। मगर नरेन्द्र मोदी का असल मकसद तो निकट भविष्य में होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव को साधने का है। हर तरह की कोशिश करने के बाद भी बंगाल सध नहीं रहा है। वंदेमातरम के तार बंगाल से जुड़ते हैं। पिछले चुनावों में सुभाष चंद्र बोस को भुनाने के बाद रविन्द्र नाथ टैगोर की तरह दाढ़ी बढ़ाकर चुनाव प्रचार किया लेकिन यह भूल गये कि रविन्द्र नाथ टैगोर की पहचान उनकी दाढ़ी नहीं उनकी सोच और लेखनी है। इस बार बंकिम चंद्र और उनकी अमर रचना वंदेमातरम पर दांव लगाया जा रहा है। जो कि एक खतरनाक खेल की शुरुआत है और इससे देश को कहीं ज्यादा गहरे जख्म मिलेंगे।

वन्दे मातरम्' को १०० वर्ष हुए, तब देश ने आपातकाल का काला अध्याय अनुभव किया  ! - PM Modi - सनातन प्रभात

आज के दौर में न तो संसद न ही सांसद लोगों से जुड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। देश की जीडीपी से ज्यादा ग्रोथ कार्पोरेटस् की हो रही है, सांसदों की ग्रोथ भी कार्पोरेटस् से कम नहीं है। सत्तापक्ष हो या विपक्ष सबने देश को जी भर कर लूटा है और यह क्रम निरंतर जारी है। 2014 के पहले करप्शन अंडर टेबिल था 2014 के बाद से करप्शन को सिस्टम का हिस्सा बना दिया गया। 2014 के पहले जांच ऐजेसियां प्रीमियर कहलाती थी लेकिन माना जाता था कि वे सरकार पर आंच नहीं आने देंगी लेकिन 2014 के बाद यही प्रीमियर जांच ऐजेसियां केवल और केवल सरकार को बनाये रखने के लिए काम करने लगी हैं। 2014 के बाद देश के चारों पिलर न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया पूरी तरह धराशाई हो चुके हैं। भारत का मतलब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर दिया गया है। वंदेमातरम की पहचान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश की नई परिभाषा गढ़ने की कोशिश करते हुए अतीत के दौर की परिस्थितियों को उठाकर ये कहने चूक नहीं रहे हैं कि अगर ये किया होता, वो किया होता, तो ऐसा हो जाता, वैसा हो जाता।

विपक्ष मुगालते में है कि देश के भीतर जेन-जी जाग जायेगा। जेन-जी इस मुगालते में है कि विपक्ष राजनीतिक समाधान कर देगा। देश का वोटर इस मुगालते में है कि उसके वोट के जरिए सत्ता परिवर्तन हो जायेगा। देश की सत्ता भी मुगालते में है कि जब सब कुछ उसकी मुट्ठी में है तो फिर कौन हिम्मत करेगा। लेकिन जिस दिन वंदेमातरम के गीत में लिखे हुए शब्द देश की शिराओं में दौड़ने लगेगा उस दिन किसी को कोई मुगालता नहीं रहेगा। वंदेमातरम गीत के बीच का पैरा बहुत साफ तौर पर कहता है "कौन कहता है तू निर्बल है माँ, तू अपार शक्ति है, तू संकट से पार लगाने वाली है और शत्रुओं का नाश करने वाली है, तू ही ज्ञान है, धर्म है, हृदय में है, तू ही जीवन का सार है, तू प्राण है, भुजाओं की शक्ति है और हृदय की भक्ति है, हम तुझे ही पूजते हैं माँ। और उस माँ का मतलब पार्लियामेंट नहीं है। उस माँ का मतलब सत्ता नहीं है। उस माँ का मतलब चुने जाने वाला प्रतिनिधि नहीं है। उस माँ का मतलब प्रधानमंत्री भी नहीं है। उस माँ का मतलब वही भारत है जिसके भीतर मौजूदा वक्त में लोगों की आय देश की आय के सामने कहीं टिकती ही नहीं है। दुनिया के भीतर जिन लोगों की आय सबसे कम है उस कतार में भारत के 82 फीसदी लोग खड़े हैं यानी 100 करोड़ से भी ज्यादा, दुनिया के सबसे रईस लोगों की कतार में भारत के 50 लोग खड़े हैं। जिस दिन लोग कार्पोरेट, सत्ता और संविधान के भीतर झांकते हुए देश की मौजूदा परिस्थितियों को समझ जायेंगे उस दिन वंदेमातरम का गान होगा और लोग खामोशी के साथ खड़े होकर सुनेंगे और यह संसद के भीतर नहीं बीच चौराहे पर होगा।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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December 16, 2025
Ahaan News

अंतरराष्ट्रीय मानवता दिवस पर हयूमन राइट्स प्रोटेक्शन सेल HRPC द्वारा अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन के शानदार कार्यक्रम में रेखा चौरसिया हुईं सम्मानित

वर्चुअल होस्ट के रूप में सत्र का संचालन रेखा चौरसिया और रश्मि जी द्वारा मंच से किया गया

HRPC  के अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन के खास अवसर पर वर्चुअल पटल पर आमंत्रित,सुप्रीम कोर्ट के जज श्री तलवंत सिंह जी,राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी जी, डॉ शूलपाणि, लॉ के महारथी सुविख्यात अधिवक्ता MJ Sir लाखों व्यूअर्स के फ़ॉलरशिप रखने वाले( यू ट्यूबर), वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता श्री आदिश अग्रवाल जी, DD1 से वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेश मिश्रा जी, नोएडा फिल्म सिटी  के मारवाह स्टूडियोज के संस्थापक श्री डॉ संदीप मारवाह जी  समेत, स्वीडन, न्यूयॉर्क, लन्दन, USA से प्रमुख हस्तियों समेत अनेक सामाजिक,राजनैतिक एवं न्यायिक क्षेत्र से संबंधित अतिथियों ने सायंकाल 6 बजे से  रात्रि 12.30 बजे तक मानवाधिकारों की सुरक्षा के विविध आयामों, समस्याओं  एवं सुधारों की  विशेष परिचर्चा की।

बच्चों और महिलाओं पर अनैतिक गतिविधियों समेत शोषण और उठाए जानेवाले कड़े निर्देशों के प्रति जागरूक कदम उठाने का शीर्ष हस्तियों की ओर से आवाह्न किया गया ।निरन्तर बढ़ती समस्याओं पर विधिक परिचर्चा में अधिवक्ता श्रेणी की प्रमुख हस्तियों द्वारा उद्बोधन  दिया गया।उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करते हुए HRPC  के विशिष्ट  राष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत किया गया। 

मीडिया और अन्य क्षेत्रों के जन समूह के लोग  पटल पर  उपस्थित रहे। 10 दिसंबर 2025 के अंतरराष्ट्रीय मानवता दिवस पर हयूमन राइट्स प्रोटेक्शन सेल HRPC द्वारा अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन के शानदार कार्यक्रम में रेखा चौरसिया हुईं सम्मानित। 

श्रीमती अधिवक्ता ज्योति जोंगलुजू जी  (भारतीय) HRPC के प्रमुख सूत्रधार के रूप में  रहीं । वर्चुअल होस्ट के रूप में सत्र का संचालन रेखा चौरसिया और रश्मि जी द्वारा मंच से किया गया। देर रात्रि चले सत्र में स्वीडन से सम्माननीय  श्रीमती ऋतु राज जी  सहित विदेश में बसे भारतीय मूल के सम्मानित हस्तियों द्वारा उद्बोधन दिया गया। वो सम्मानित अध्यक्ष गण द्वारा 100 से भी ज्यादा लोगों का सम्मान  किया गया। पटल  के पीछे का कार्यभार संदीप जी द्वारा संभाला गया।मानवता की सेवा में तत्पर  मानव अस्तित्व  के सही क्रम और दिशा की ओर HRPC के सहयोग के लिए सभी का एकजुट होने का संकल्प लेते ,एवं अग्रिम सत्र की शुभकामनाओं के साथ सत्र का सफलतम समापन किया गया। आभार HRPC (नई दिल्ली) से ज्ञापित किया जाता है।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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December 07, 2025
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खरी-अखरी(सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 32

राजनीतिक गलियारों से चौपालों तक एक ही चर्चा

PM Narendra Modi Twitter Account Hacked, Bitcoin Officially Adopted Link  Posted And Removed All You Need To Know - नरेंद्र मोदी का ट्विटर अकाउंट  हैक, 'भारत ने बिटकॉइन को मंजूरी दी', ट्वीट

देशभर में तीन बातों को लेकर राजनीतिक गलियारों से लेकर चौपालों तक में चर्चा चल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आंख कान नाक क्यों चटकाये जा रहे हैं ? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक्स अकाउंट (ट्यूटर अकाउंट) का एसआईआर क्यों किया गया ? राष्ट्रपति द्वारा दिये गये भोज में अपोजीशन लीडर्स को ना बुलाकर कौन बेइज्जत हुआ अपोजीशन लीडर्स या खुद राष्ट्रपति ?

 मोदी के आंख - कान - नाक कौन चटका रहा है ?

भीलवाड़ा के इंजीनियरिंग कॉलेज का असिस्टेंट प्रोफेसर जिसकी न तो कोई राजनीतिक पृष्टभूमि थी न ही कोई ब्यूरोक्रेसी वाला बैकग्राउंड फिर भी 2008 से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ कदमताल करते हुए वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यालय पीएमओ में मीडिया मैनेजमेंट सम्हालने वाला हिरेन जोशी नाम का शख्स इतना पावरफुल बन गया कि भारत के स्ट्रीम मीडिया के मालिक, सम्पादक, एंकर की कलम भोंथरी हो गई। कहा तो यहां तक गया कि दिल्ली की मीडिया, टी. व्ही. चैनल, उनके मालिक, सम्पादक, एंकर हिरेन जोशी के कहने पर उठते थे, बैठते थे यहां तक कि उसके पैरों में अपनी नाक तक रगड़ते थे ! हिरेन जोशी ही तय करता था कि क्या दिखाना है, कितना बताना है, क्या छिपाना है, टीवी चैनलों पर डिबेटस् के विषय क्या होंगे ? 2017 में फ्रंटलाइन मैग्जीन ने तो सनसनीखेज रिपोर्ट में लिखा कि एक बड़े अखबार के संपादक ने हिरेन जोशी से मिलकर अरविंद केजरीवाल को निशाना बनाया था। इसके बाद से केजरीवाल गवर्नमेंट (आम आदमी पार्टी) और एलजी के बीच जिस तरह की जूतम-पैजार शुरू हुई उसका नजारा देशभर ने नंगी आंखों देखा। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी पार्टियों ने समय - समय पर खुलकर हिरेन जोशी के द्वारा भारतीय मीडिया को अपने पंजे में दबोचने का आरोप भी लगाया। पीएमओ के सबसे मजबूत, सबसे ताकतवर हिरेन जोशी एक बार फिर चर्चा पर है। कहा जा रहा है कि हिरेन जोशी को 02 दिसम्बर 2025 को पीएमओ से बाहर कर दिया गया है लेकिन मोदी गवर्नमेंट की गोद में बैठकर सरकार की विरुदावली गायन करने वाला मीडिया हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है कि वह हिरेन जोशी मामले में एक लाइन लिख या बोल दे। जिस दिन हिरेन जोशी को पीएमओ से बाहर का रास्ता दिखाये जाने की खबर आती है उसी दिन यानी 02 दिसम्बर की रात को ही खबर मिलती है कि प्रसार भारती के चेयरमैन नवनीत सहगल को भी निपटा दिया गया है यानी इस्तीफा ले लिया गया है। नवनीत सहगल के इस्तीफे और आनन फानन में मंजूर कर लिए जाने की पुष्टि तो सूचना और प्रसारण मंत्रालय के द्वारा जारी किये गये पत्र से भी होती है। 

No. A-50013/138/2025-BAP. Government of India, Ministry of Information and Broadcasting BA-P Division, A-Wing, Shastri Bhavan, Dated 3rd December 2025, To, Shri Navneet Kumar Sehgal, Chairman, Prasar Bharti, Prasar Bharti House, Copemicus Marg New Delhi 110001. Subject - Resignation from the post of Chairman, Prasar Bhari, Sir, I am directed to refer to your notice dated 02.12.2025 submitting your resignation from the post of Chairman Prasar Bharti and to say that as per section 7(6) of the Prasar Bharti (Board casting corporation of India) Act 1990, the competent authority has accepted the sam. Accordingly, you are hereby relieved from the services of Prasar Bharti with immediate effect. (A M Kumar, Director (Bap))

 ये वही नवनीत सहगल हैं जिन्होंने तिहाड़ रिटर्न सुधीर चौधरी जैसे मीडिया के सबसे बदनाम चेहरे को प्रसार भारती में 15 करोड़ के पैकेज की नौकरी दे दी थी। सवाल है कि आज नौकरी देने वाले की नौकरी कौन खा गया ? इसके पहले हिरेन जोशी के करीबी और जोशी की ही सिफारिश पर लाॅ कमीशन में सदस्य बनाये गये हितेश जैन का भी इस्तीफा ले लिया गया। हिरेन जोशी, नवनीत सहगल और हितेश जैन को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लिस्ट में सबसे ताकतवर और प्रभावशाली लोगों में शुमार किया जाता है। कहा जाता है कि इनमें कोई मोदी का दांया हाथ है तो कोई बांया हाथ तो कोई मोदी की नाक-आंख-कान है। हिरेन जोशी पर आरोप लगाया जा रहा है कि उनके द्वारा बेटिंग ऐप के जरिए लंबा चौड़ा फ्रॉड किया गया है। इतने गंभीर आरोप के दायरे में खुद प्रधानमंत्री कार्यालय आ रहा है यानी एक तरीके से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आ रहे हैं इसके बावजूद हकीकत क्या है इसका खुलासा नहीं किया जा रहा है। क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को डर है कि अगर कहीं सच्चाई सामने आ गई तो पिछले 11 बरसों से गढ़ा गया औरा एक झटके में तहस नहस हो जायेगा। इसलिए बिना आवाज किये सारे राजदारों को एक - एक करके निपटा दिया जाए। क्योंकि चर्चाएं हैं कि अभी तो और भी इस्तीफे होने वाले हैं क्योंकि की गई हेराफेरी अकल्पनीय है और इसके तार देश से लेकर विदेश तक फैले हुए हो सकते हैं। जिनका खुलाशा मोदी के चेहरे पर चढ़ाये गये महामानव के मुखौटे को एक झटके में उतार फेंकेगा।

Kranti Kumar Singh

वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह ने ट्यूट किया है कि महादेव बेटिंग ऐप कांड, पीएमओ से लेकर प्रसार भारती तक हड़कंप - पिछले 48 घंटों से सोशल मीडिया पर तीन नाम ट्रेंड कर रहे हैं लेकिन TV चैनल्स पर पूरी तरह से खामोशी छाई हुई है। जैसे कुछ हुआ ही न हो। हिरेन जोशी (पीएमओ), नवनीत सहगल (प्रसार भारती), हितेश जैन (लाॅ कमीशन) ।आखिर क्यों ? महादेव बेटिंग ऐप क्या है ? दुबई से संचालित ये आनलाईन सट्टेबाजी ऐप पिछले 4 साल से 50000+ करोड़ रूपये का कारोबार कर चुका है। ईडी सीबीआई की जांच से खुलासा हुआ है कि इसके मालिक सौरभ चंद्राकर और रवि उप्पल ने छत्तीसगढ़ से लेकर दुबई तक नेताओं, पुलिस वालों और बड़े-बड़े अफसरों को हवाला के जरिए पैसे बांटे हैं। प्रमोशन के लिए बालीवुड सेलेब्स की शादियाँ तक स्पांसर की हैं। अब जांच की आंच दिल्ली तक पहुंच गई है जिसमें सबसे बड़ा नाम आया है पीएमओ के ओएसडी हिरेन जोशी का। हिरेन जोशी (पीएमओ - ओएसडी) मोदी का सबसे करीबी, गुजरात के दिनों से मीडिया मैनेजमेंट करने वाला बांया हाथ। सोशल मीडिया पर वायरल दस्तावेज और चैटस् में दावा - जोशी को दुबई से महादेव बेटिंग ऐप के मालिकों की तरफ से मोटी रकम मिलती थी। विदेशी डील्स, चैनल मैनेजमेंट और नैरेटिव के बदले कमीशन। गिरफ्तारी से बचने के लिए अचानक इस्तीफा - अश्वनी वैष्णव को सौंप कर भागे। हितेश जैन (लाॅ कमीशन) अप्रैल 2025 में नियुक्ति - अक्टूबर 2025 अंत तक इस्तीफा। जोशी के कथित करीबी होने के बाद भी एक ही दिन में सामान पैक कर बंगला खाली करा लिया गया। सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है कि लाॅ कमीशन के जरिए बेटिंग कानूनों में ढ़ील दिलाने की कोशिश की गई। नवनीत कुमार सहगल (चेयरमैन प्रसार भारती) एक साल से ज्यादा कार्यकाल बाकी होने के बावजूद 2 दिसम्बर 2025 की रात में इस्तीफा लेकर 3 दिसम्बर 2025 को इस्तीफा स्वीकार करने का बकायदा लैटर जारी कर दिया गया। सोशल मीडिया पर Mahadev Batting Scam# Hire Joshi ट्रेंड कर रहा है। सवाल स्वाभाविक है कि पीएमओ में बैठा हुआ शख्स अगर बेटिंग माफिया का हिस्सा हो सकता है तो फिर देश की सुरक्षा का भगवान ही मालिक है और यह समय - समय पर साबित भी हुआ है। चाहे वह पुलवामा हो, पठानकोट हो, पहलगाम हो या फिर देश की राजधानी के दिल चांदनी चौक (लालकिला के पास ) में हुआ विस्फोट। जिस प्रधानमंत्री की मर्जी से दूसरे विभाग का भी पत्ता तक नहीं डोलता उसके खुद के कार्यालय में बिना उसकी मर्जी के, जानकारी के इतना बड़ा स्कैम हो ही नहीं सकता है। पीएमओ के भीतर तकरीबन 50 हजार करोड़ के काले धंधे में विरोधियों को गरियाने वाले मीडिया की इतनी दयनीय स्थिति हो गई है कि उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा है। कहीं पापा न नाराज हो जायें।

मोदी के फालोवर्स का भी हो गया एसआईआर

सरकार ने ट्विटर से कहा, भारत विरोधी अभियान के लिए ट्विटर का इस्तेमाल न हो -  BBC News हिंदी

अच्छे दिन आने का जुमला उछाल कर लोगों के अच्छे दिनों का ख्वाब चकनाचूर कर देने वाले या यूं कहें देश के अच्छे दिनों को दुर्दिन में तब्दील कर देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के क्या अब बुरे दिनों की शुरुआत होने वाली है। जहां एक ओर प्रधानमंत्री कार्यालय ही कांडों की चपेट में आ गया है। पीएम मोदी के आंख, कान, नाक, दांये - बांये हाथ इस्तीफा दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तकरीबन आधा करोड़ फालोवर्स का एसआईआर कर दिया गया है। जैसा कि विपक्ष लगातार आरोप लगाता चला आ रहा है कि भारत  चुनाव आयोग का मुखिया ज्ञानेश गुप्ता एसआईआर के जरिए मोदी की पार्टी बीजेपी की सत्ता बरकरार रखने के लिए लाखों जायज वोटरों के नाम वोटर लिस्ट से गायब करने में लगा हुआ है, पीएमओ के सबसे ताकतवर कहे जाने वाले हिरेन जोशी नामक व्यक्ति के बारे में खबर आ रही है कि वह प्रधानमंत्री कार्यालय से ही बेटिंग ऐप चला है। वही पीएम नरेन्द्र मोदी के लिए अशुभ खबर निकल कर आ रही है कि एक्स (ट्यूटर) के मालिक एलन मस्क ने भी एसआईआर जैसा कुछ करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक्स अकाउंट से 40 लाख से अधिक फालोवर्स कम कर दिये हैं। 4 मिलियन फालोवर्स डिलीट किये जाने के पीछे बताया जा रहा है कि ये फर्जी थे। तो क्या बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को महिमामंडित करने के लिए फर्जी फालोवर्स तैयार किये थे और आज जब हकीकत सामने आ रही तो इससे भले ही बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शर्मशार न हों लेकिन देश तो दुनिया के आगे शर्मशार हो ही गया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि एलन मस्क अगर थोड़ी सी और बारीक जांच कर लें तो मोदी के 60 फीसदी तक फालोवर्स कम हो सकते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार लिखते हैं - अपने ही लोगों ने अपने ही लोगों को कैसे पकड़ लिया और अपने को हटाकर अपने को क्यों बना दिया ? सफाई करने वाला कौन है ? वह किसे साफ कर रहा है ? उसे जिसे खुद बैठाया है और उसकी जगह जो आयेगा फिर उसे कौन साफ करेगा ? जिसके पास इतने सारे राज हैं क्या उसे हटा दिया जायेगा ? क्या छापा पड़ा है या बिना छापे के ही कुछ बरामद हो गया है ? क्या हुआ है और क्या हो रहा है ? वरिष्ठ पत्रकार डाॅ मुकेश कुमार ने लिखा है - ये सफाई नहीं है। अपनी गर्दन बचाने की कोशिश है। हिरेन जोशी की मंडली ने कुछ ऐसा किया है जिससे साहब को परेशानी खड़ी होने वाली थी। जाहिर है ये सफाई अभियान नहीं है बल्कि खुद को किसी बड़े संकट से बचाने की कोशिश है। क्या ये संकट अमेरिका से आ रहा है ? सुब्रमण्यम स्वामी के हटाये गये ट्यूट से भी क्या इसका कोई संबंध है ? स्वामी ने ट्यूट किया था कि अमेरिका का ब्लैकमेल झेल पाना मोदी के लिए मुश्किल है। इसमें चरित्र को लेकर भी बहुत कुछ कहा गया था। बाद में डिलीट कर लिया। फिर भी कुछ तो हुआ है जिससे गुजराती दरबार में धड़कनें बढ़ी हुई है और वह अपनों के ही पर कतरने में लग गई है। जिस महादेव बेटिंग ऐप को लेकर विपक्षियों को परेशान किया गया उसके असल खिलाड़ी तो वही निकल रहे हैं जो दूसरों पर आरोप लगा रहे थे। देश यह भी जानता है कि पीएम कुछ नहीं बोलेंगे । जांच नहीं होगी । अदालत कुछ नहीं करेगी फिर भी.............. ।

एक बार फिर मोदी ने ओछी राजनीति का इज़हार किया

Putin India Visit: 'समय की कसौटी पर खरी दोस्ती', पुतिन से मिलकर बोले PM  मोदी - Vladimir putin india visit Moscow delhi india russia relation live  updates ntc - AajTak

रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन भारत आये। ये उसी देश के राष्ट्रपति हैं जिसने पहलगाम हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ किये गये आपरेशन सिंदूर का खुलकर समर्थन नहीं किया था। भारत के सभी पड़ोसी देशों सहित दुनिया का कोई भी देश जिसमें दुनिया के तीनों ताकतवर देश अमेरिका, चीन, रूस शामिल हैं भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ यानी भारत को अकेला अलग - थलग छोड़ दिया गया था। जिस तरह से नरेन्द्र मोदी ने ब्लादिमीर पुतिन की अगवानी प्रोटोकॉल तोड़ कर की उसने भारत के प्रधानमंत्री की पराजय, पराभव की पराकाष्ठा को दुनिया के सामने रख दिया है ! रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के आगमन पर भारतीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिया गया भोज (यह श्रीमती मुर्मू का व्यक्तिगत भोज नहीं था यह भारत के द्वारा रूस के सम्मान में दिया गया भोज था) उसमें उन्होंने लीडर आफ अपोजीशन को आमंत्रित ना करके न केवल संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनयिक संबंधों के मद्देनजर भारत की छबि पर भी आघात किया है। राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू से इतनी तो अपेक्षा की ही जा सकती है कि वे इस बात को जानती होंगी कि विपक्ष का नेता (leader of the opposition) छाया प्रधानमंत्री (shadow prime minister) की तरह होता है। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को विपक्ष के नेता से कोई भय हो ऐसा भी समझ से परे है। 
एक बार फिर साबित हो गया है कि मोदी सत्ता राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को रबर स्टाम्प के लायक भी नहीं समझती है। और इस तरह के नजारे देश के सामने कई बार आये हैं जब श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को बतौर राष्ट्रपति जो सम्मान मिलना चाहिए था मोदी सत्ता ने नहीं दिया है। पार्लियामेंट के नये भवन के लोकार्पण में श्रीमती मुर्मू को नहीं बुलाना। लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित करते समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सोफे पर बैठे रहना और राष्ट्रपति का खड़ा रहना। पुतिन के भोज के दौरान भी राष्ट्रपति का अलग - थलग उपेक्षित सा खड़ा रहना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विपक्ष के नेता राहुल गांधी से भय तो समझा जा सकता है। राहुल गांधी के सामने नरेन्द्र मोदी के भीतर समाई हीन भावना साफ - साफ दिखाई देती है। नरेन्द्र मोदी को हिन्दी के अलावा शायद कोई दूसरी अंतरराष्ट्रीय भाषा आती हो । अंग्रेजी खासतौर पर । राहुल गांधी को हिन्दी, अंग्रेजी दोनों आती है। अब अगर वो राहुल गांधी को बतौर विपक्षी नेता के तौर पर रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करवाते तो तय था कि राहुल गांधी पुतिन से नरेन्द्र मोदी के मुकाबले बेहतर और प्रभावशाली तरीके से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बात कर सकते थे, भारत का पक्ष रख सकते थे। लीडर आफ अपोजीशन से रूसी राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकात ना कराकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी ओछी राजनीति का ही इजहार करके पुतिन की नजरों में खूद को ओछा साबित कर दिया है। नरेन्द्र मोदी ने यह भी साबित कर दिया है कि उन्हें विदेश नीति, कूटनीति की तरह डिप्लोमेसी भी नहीं आती है। वैसे देश को इससे कोई अचंभा नहीं हुआ कि मोदी ने पुतिन से राहुल को क्यों नहीं मिलवाया। देश जानता है कि मोदी की राजनीति विपक्ष विहीन लोकतंत्र है। नरेन्द्र मोदी तो 2014 से ही लोकतंत्र के एक पहिये विपक्ष को लगातार तोड़ते आ रहे हैं यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लंगड़े लोकतंत्र को पोस रहे हैं। सच कहा जाय तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी को रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से दूर रख कर राहुल गांधी के कद को बड़ा कर दिया है। कहा जा सकता है कि भारतीय राष्ट्रपति द्वारा रूसी राष्ट्रपति के सम्मान में दिये गये भारतीय भोज से लीडर आफ अपोजीशन को दूर रखना राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का सबसे बड़ा फेलुअर है।

पुतिन ने माथा पीट लिया होगा इंटरव्यूई सवाल सुनकर 

Putin India Visit: यूक्रेन युद्ध के बीच पुतिन का भारत दौरा क्यों है इतना  खास? 10 प्वाइंट में समझिए - PM Modi Welcomes Vladimir Putin Warmly as India  Russia Summit Focuses Defence


चलते - चलते भारतीय मीडिया पर भी नजर डालनी भी जरूरी है। जिसने एकबार फिर ये साबित कर दिया कि कुएं के मेंढक का संसार कुंआ ही होता है उसके लिए कुएं के बाहर भी कोई दुनिया है, बेमानी होता है।आजतक की पत्रकार अंजना ओम कश्यप और गीता मोहन जिस तरह से रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का साक्षात्कार करने बैठीं थी वह अपने आप में अशोभनीय था। ब्लादिमीर पुतिन सोच रहे थे कि सामने बैठीं भारतीय पत्रकार उनसे विदेश मामलों पर, यूक्रेन, गाजा के मसले पर, चाइना की वन बैल्ट योजना पर, पाकिस्तान के आतंकवाद जैसे साधारण और सीधे - सरल सवाल करेंगी लेकिन रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन उस समय असहज हो गये जब पत्रकारों ने उनसे "आप हमारे प्रधानमंत्री मोदी को भारत के दूसरे प्रधानमंत्रियों तथा दूसरे राष्ट्राध्यक्षों की तुलना में कितने अंक (रेटिंग) देंगे जैसे कठिन सवाल करने शुरू कर दिये। आजतक की मालकिन ने जब पुतिन से कुछ इस तरह के सवाल पूछना शुरू किया कि "आप थकते क्यों नहीं हैं ? आप छुट्टी क्यों नहीं लेते हैं ? आप छुट्टी लेते हैं या नहीं लेते हैं ? निश्चित ही ऐसे सवालों को सुनकर रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने अपना माथा पीट लिया होगा कि भारत का मीडिया कितनी खोजी पत्रकारिता करता है। उसके लिए भारत और रूस के रिश्ते से ज्यादा महत्वपूर्ण ये सवाल है कि रूसी राष्ट्रपति खाता-पीता क्या है। वह छुट्टी लेता है या नहीं। इसीलिए रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने सामने बैठी पत्रकारों और आजतक की मालकिन को उनकी औकात बताते हुए सवाल का जवाब देते हुए कहा कि आपका सवाल INDECENT (अभद्र, अश्लील, अशिष्ट, अशालीन, निर्लज्ज, अनुचित, धृष्ट, भोंड़ा, भौंड़ा) है। वरिष्ठ पत्रकार प्रियंका भारती ने ट्यूट किया है कि - "गोदी मीडिया को महामानव के चापलूसी की इतनी बुरी लत लगी हुई है कि हमारे ही अपने देश के बाकी प्रधानमंत्रियों को नीचा दिखाने वाले सवाल कर रही है। वो तो शुक्र हो पुतिन का कि उन्होंने सवाल को ना सिर्फ एक सिरे से खारिज किया बल्कि ये कहा कि ये सवाल "INDECENT" है। और कितना अपना मखौल बनायेंगे ? शायद ऐसी ही पत्रकारिता की वजह से वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2025 में भारतीय पत्रकारिता 180 देशों के बीच में 151वें पायदान पर खड़ी है। शायद वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम का यह मानना कि भारतीय मीडिया सच को दबाती है और झूठ को फैलाती है गलत नहीं है।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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October 16, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 31

कैसे मिलेगी सुप्रीम कोर्ट आ रही न्यायिक सड़ांध से निजात ?

Bharat ki Nyaypalika,Judiciary of india,भारत की न्यायपालिका

भारतीय न्यायपालिका की पहचान तो यही रही है कि न्याय का ककहरा लिखते वक्त जाति, धर्म, लिंग, सम्प्रदाय कुछ भी मायने नहीं रखता है लेकिन मौजूदा वक्त में उछाले जा रहे राजनीतिक जूते ने इस नकाब को भी नोचकर फेंक दिया है और चंद दिन पहले ही भावी सीजेआई ने उस पर अपनी मोहर भी लगा दी है ! गजब का देश है भारत जहां दैवीय शक्तियां पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, दलितों का मानमर्दन करने का हुक्म दे रही हैं, हालात यहां तक हो चले हैं कि अल्पसंख्यक, आदिवासी, पिछड़ा, दलित देश की सबसे बड़ी अदालत का मुखिया हो या देश का प्रथम नागरिक उसकी औकात जूते से भी कम आंकी जा रही है । दुनिया में एक ओर तानाशाही देश में लोकतंत्र की लौ को जलाये रखने वाले को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर लोकतांत्रिक देश की डींगे भरने वाले देश में मौजूदा राजनीतिक सत्ता द्वारा खुद को बरकरार रखने के लिए लोकतंत्र को जूते की नोक पर रखा जा रहा है। लोकतंत्र के पिलर और लोकतांत्रिक संस्थानों ने एक - एक करके मौजदा राजनीतिक सत्ता की चौखट पर अपना माथा टेक चुके हैं बाकी रह गया था न्यायालय तो उसने भी अपना जमीर मौजूदा राजनीतिक सत्ता के आगे गिरवी रखने के संकेत देने शुरू कर दिये हैं। चंद दिनों बाद तो पूरा सरेंडर देखने को मिलने वाला है !

वर्ष 1861 में खुला था दिल्ली पुलिस का पहला थाना, चोरी की हुई थी पहली  रिपोर्ट - ncr Delhi Police first police station was opened in year 1861  first report was of theft

सेवा में, 

थाना प्रभारी, पुलिस स्टेशन, सेक्टर 11, चंडीगढ़ - विषय - श्री शत्रुजीत सिंह कपूर डीजीपी हरियाणा और नरेन्द्र विजारिणिया आईपीएस एसपी रोहतक के खिलाफ धारा 108 बीएनएस 2023, एससी-एसटी एक्ट एवं अन्य प्रासंगिक प्रावधानों के तहत श्री वाई पूरन कुमार की दुखद मौत के संबंध में एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध। सर/मैडम - अकथनीय दुख से दबे हुए हृदय, न्याय में हिलते विश्वास के साथ मै श्रीमती अवनीत पी कुमार आईएएस 2021 बैच हरियाणा स्वर्गीय वाई पूरन कुमार आईपीएस की पत्नी आपको न केवल एक लोकसेवक के रूप में बल्कि सबसे बढ़कर एक शोक संतप्त पत्नी और एक माँ के रूप में लिखती हूं, जो एक परिवार पर पड़ने वाली सबसे बड़ी त्रासदी का अनुभव कर रही हूं। मैं एफआईआर दर्ज करने, अभियुक्त की तत्काल गिरफ्तारी के लिए शिकायत प्रस्तुत कर रही हूं। मेरे पति को उनके दलित पहचान की वजह से इतना सताया और उकसाया गया कि 7 अक्टूबर 2025 को उन्होंने आत्महत्या कर ली। उस दिन मैं जापान की आधिकारिक यात्रा पर थी और दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बारे में जानकारी मिलने पर भारत वापस आ गई। इसलिए मैं आज यानी 8.10.2025 को शिकायत दर्ज करा रही हूं। मेरे पति जो बेदाग ईमानदारी और असाधारण सार्वजनिक भावना वाले एक आईपीएस अधिकारी थे। 7 अक्टूबर 2025 को हमारे घर पर गोली चलने से मतृ पाये गये। हालांकि आधिकारिक कहानियां खुद जान देने का संकेत देती हैं। मेरी आत्मा एक पत्नी के रूप में न्याय के लिए रोती है, जिसने वर्षों तक व्यवस्थित अपमान देखा और सहा है। हरियाणा के डीजीपी श्री शत्रुजीत सिंह कपूर सहित वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मेरे परिवार पर किये गये उत्पीड़न की कई शिकायतें हैं। मेरे पति का दर्द छिपा हुआ नहीं था और ये उनके द्वारा दायर की गई अनेक शिकायतों से स्पष्ट है कि उन्होंने जाति आधारित भेदभाव को सहन किया और करते ही जा रहे थे। मेरे पति को ये बात पता चली और उन्होंने मुझे इसकी जानकारी दी कि डीजीपी हरियाणा श्री शत्रुजीत सिंह कपूर के निर्देश पर उनके विरुद्ध एक षड्यंत्र रचा जा रहा है और झूठे साक्ष्य गढ़कर उन्हें तुच्छ और शरारतपूर्ण शिकायत में फंसाया जायेगा। डीजीपी हरियाणा श्री शत्रुजीत सिंह कपूर के निर्देश पर उनको मृत्यु से ठीक पहले क्रूरता पूर्वक धारा 308 (3) बीएनएस 2023 के तहत एक झूठी एफआईआर पुलिस स्टेशन अर्बन स्टेट रोहतक में दिनांक 6.10.2025 को मेरे पति के स्टाफ सुशील के खिलाफ दर्ज की गई। सुनियोजित साजिश के तहत उनके खिलाफ सबूत गढ़ के उक्त मामले में मेरे पति को फंसाया जा रहा था। जिसमें उन्हें अपनी जान देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस संबंध में उन्होंने डीजीपी श्री शत्रुजीत सिंह कपूर से सम्पर्क किया था, उनके साथ बातचीत की थी लेकिन डीजीपी ने इसे दबा दिया। इसके अलावा मेरे पति ने नरेन्द्र विजारिणिया एसपी रोहतक को भी फोन किया था लेकिन उन्होंने जानबूझकर उनके फोन का जबाब नहीं दिया। आठ पन्नों का उनका अंतिम नोट एक टूटे हुए मन का दस्तावेज है, जो इन सच्चाइयों और कई अधिकारियों के नामों को उजागर करता है जिन्होंने उन्हें इस हद तक पहुंचा दिया। मेरे पति को जो उत्पीड़न सहना पड़ा उसके बारे में वो मुझे बताया करते थे। मेरे बच्चों और मैंने जो खोया उसके लिए शब्द ढूंढ़ना असंभव है। एक पति, एक पिता, एक ऐसा व्यक्ति जिसका एकमात्र अपराध सेवा में ईमानदारी थी। एक अधिकारी के रूप में जिसने अपना सब कुछ अपने कैरियर की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया है। मुझे अब उन्हीं संस्थानों पर भरोसा रखना चाहिए, जिन्हें मैंने और मेरे पति ने अपने सर्वश्रेष्ठ वर्ष दिए हैं। उपरोक्त के अतिरिक्त मेरे पति ने बार-बार जाति आधारित गालियों, पुलिस परिसर में पूजा स्थलों से बहिष्कार, जाति आधारित भेदभाव, लक्षित मानसिक उत्पीड़न और सार्वजनिक अपमान तथा वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किए गए अत्याचार को बर्दाश्त किया। मैं आपके ध्यान में ये भी लाना चाहती हूं कि ये स्थापित कानून है कि उत्पीड़न, अपमान और मानहानि के निरंतर कृत्य भी उकसावे के दायरे में आ सकते हैं केवल तत्कालिक घटनाओं की ही नहीं बल्कि समग्र परिस्थितियों की भी जांच की जानी चाहिए कि प्रशासनिक उत्पीड़न किसी व्यक्ति को किस हद तक जान देने पर मजबूर कर सकता है। दलित पहचान के आधार पर मेरे पति को परेशान करना अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत एक गंभीर अपराध है। मैं सिर्फ अपने परिवार के लिए ही नहीं बल्कि हर ईमानदार अधिकारी के जीवन और सम्मान के मूल्य के लिए भी गुहार लगा रही हूं। ये कोई साधारण मामला नहीं है बल्कि मेरे पति जो अनुसूचित जाति से आते थे, ताकतवर और उच्च पदस्थ अधिकारियों द्वारा उनके व्यवस्थित उत्पीड़न का सीधा नतीजा है, जिन्होंने अपने पद का इस्तेमाल करके उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया और अंततः उन्हें इस हद तक धकेल दिया कि उनके पास जान देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि कृपया हरियाणा के डीजीपी श्री शत्रुजीत सिंह कपूर और रोहतक के एसपी नरेन्द्र विजारिणिया आईपीएस के खिलाफ धारा 108 बीएनएस 2023 और अनुसूचित जाति - जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम और अन्य प्रासंगिक प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज करें और बिना किसी देरी के उन्हें तुरंत गिरफ्तार करें क्योंकि दोनों आरोपी शक्तिशाली व्यक्ति हैं और प्रभावशाली पदों पर बैठे हुए हैं, वो स्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए सभी प्रयास करेंगे जिससे सबूतों से छेड़छाड़ और गवाहों को प्रभावित करने सहित जांच में बाधा डालना भी शामिल है। न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए। हमारे जैसे परिवारों के लिए जो शक्तिशाली लोगों की क्रूरता से टूट गये हैं। मेरे बच्चों को जबाब मिलना चाहिए। मेरे पति के दशकों की जनसेवा सम्मान की हकदार है, खामोशी की नहीं। अवनीत पी कुमार आईएएस स्वर्गीय वाई पूरन की पत्नी।

Justice BR Gavai: कौन हैं बुल्डोजर एक्शन पर सवाल उठाने वाले जज बीआर गवई, जो  बनेंगे देश के अगले मुख्य न्यायाधीश | Moneycontrol Hindi

ये उस पत्र का हिन्दी मजमून है जो उन्होंने अंग्रेजी में लिखा है। ये मामला ठीक उस घटना के बाद घटित हुआ है जिसकी स्याही अभी सूखी भी नहीं है। चीफ जस्टिस आफ इंडिया जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई जो कि दलित समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं उन पर वकील राकेश किशोर द्वारा सुप्रीम कोर्ट के भीतर चल रही सुनवाई के दौरान जूता फेंकने से पहले एक दलित युवक हरिओम बाल्मीकि को पीट-पीट कर मार डाला गया। यह भी गजब का संजोग है कि तीनों घटनायें दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश (रायबरेली) में घटी हैं जहां पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। इसके पहले भी मध्यप्रदेश में एक आदिवासी युवक पर बीजेपी विधायक के प्रतिनिधि द्वारा पेशाब करने, बिहार में दलित नाबालिक लडकियों के साथ दुष्कर्म और चाकू से गोदकर हत्या करने के मामले सामने आ चुके हैं। जहां तक आरोपियों को सजा दिये जाने का सवाल है उसका उत्तर नकारात्मक ही है और जिन दो हाई प्रोफाइल व्यक्तियों के साथ घटित घटना पर होने वाली सजा का सवाल है उसका उत्तर भी नकारात्मक ही होने वाला है। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि जिस देश का प्रथम नागरिक आदिवासी हो और उसे भी समुचित सम्मान न मिल रहा हो तो फिर बाकी तो कीड़े मकोड़े की कतार पर ही खड़े किये जा सकते हैं। जातिवाद के इस घिनौने खेल में न तो आईएएस, आईपीएस की कुर्सी कोई मायने रखती है न चीफ जस्टिस आफ इंडिया की कुर्सी और न ही राष्ट्रपति की। इन ऊंची कुर्सियों पर बैठा हुआ एक भी दलित, पिछड़ा, आदिवासी, अल्पसंख्यक उच्च जातिवादी गिरोह को आजादी के 75 साल बाद भी बर्दास्त नहीं हो पा रहा है और ये मामले वहां ज्यादा दिखाई देने लगते हैं जहां पर संविधान तथा तिरंगे को आंतरिक रूप से ना मानने वाली विचारधारा की पार्टी राज कर रही हैं।

राष्ट्रपति के महिला, दलित या आदिवासी होने से ज़मीन पर क्या असर होता है? -  BBC News हिंदी

यह भी कम सोचनीय नहीं है कि अल्पसंख्यकों, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों के वोट से सरकार में हिस्सेदार बने बैठे नेताओं की सेहत पर भी जरा सा फर्क नहीं पड़ता है। सोशल मीडिया पर एआई से बनाई हुई शर्मनाक तस्वीर जिसमें सीजेआई के चेहरे पर नीला रंग पोत कर, गले में मटकी लटकाकर गाल पर जूता मारते हुये वायरल की गई और नीले रंग की झंडावरदार नेता उसी भगवा पार्टी का गुणगान कर रही है जिसकी आईटी आर्मी पर इन शर्मनाक हरकतों को अंजाम देने के आरोप लग रहे हैं। इस कतार में बहुजन समाज पार्टी के साथ ही लोक जनशक्ति पार्टी, हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा, सुभासपा, निषाद पार्टी, अपना दल सभी खड़ी हैं। इनको तो इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है कि जिस भीमराव अम्बेडकर का नाम लेकर सत्ता सुख भोग रहे हैं उसी भीमराव अम्बेडकर को मनुवादी विचारधारा के लोग देश का गद्दार कहने से नहीं चूक रहे हैं। तो क्या ये मान लिया जाय कि दलित, पिछड़ा, आदिवासी और अल्पसंख्यक चीफ जस्टिस आफ इंडिया की कुर्सी पर बैठे या राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे सभी की औकात जूते से भी कम है। मोदी सरकार में दलितों के वोट से जीत कर ऐश कर रहे चिराग पासवान हों या जीतन राम माझी या फिर सुप्रिया पटेल किसी ने भी अपना मुंह खोलने की औकात नहीं दिखाई लेकिन मोदी सरकार में मंत्री रामदास अठावले ने सीजेआई पर किये गये हमले के तार को आरएसएस से जोड़ते हुए कहा है कि सीजेआई बीआर गवई पर फेंका गया जूता उनकी माँ द्वारा आरएसएस के कार्यक्रम में जाने से मना करने से जुड़ता है। उन्होंने कहा कि इस समय दिव्य शक्तियां दलितों, अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, आदिवासियों, को अपमानित करने का आदेश दे रही हैं। तो क्या देश में वाकई राम राज्य मोदी राज्य में तब्दील हो चुका है। हरियाणा में भले ही मरने वाला आईपीएस अधिकारी हो लेकिन है आखिर है तो वह दलित ही ना तो फिर वही हुआ है जो होना चाहिए था। एफआईआर दर्ज तो की गई लेकिन नाम किसी का नहीं लिखा गया। धारायें ऐसी लगाई गईं जिससे आरोपी आसानी से बरी हो जायें। सुसाइड नोट में नामित किसी भी अधिकारी को सस्पेंड नहीं किया गया है। सरकार ने लाश को भी अपनी संवेदनहीनता का शिकार बनाने से परहेज नहीं किया शायद का परिणाम है कि वाई पूरन कुमार का अंतिम संस्कार 9 दिन बाद हो सका। डबल इंजन की सरकार की जिद के आगे उसकी पत्नी की आवाज़ नक्कारखाने में तूती की तरह समाती चली गई ।

भारत में लोकतंत्र का राग गाया जाता है मगर लोकतंत्र के क्या मायने होते हैं और लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए तानाशाही के खिलाफ संघर्ष का क्या मतलब होता है इसकी एक झलक उस समय देखने को मिली जब नाॅर्वेजियन नोबेल समिति सामने आई और उसने ऐलान किया कि इस बार का नोबेल शांति सम्मान एक ऐसी महिला को दिया जा रहा है जिसने गहराते अंधेरे के बीच लोकतंत्र की लौ को जलाये रखा है। नोबेल कमेटी ने कहा जब लोकतंत्र खतरे में हो और हर जगह उसका खतरा बहुत साफ तौर पर दिखाई दे रहा हो तब ये सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है कि उसकी रक्षा की जाए। इस कसौटी पर खरी उतरने वाली वेनेजुएला की मारिया कोरिना मचाडो को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया जा रहा है।

Nobel Peace Prize 2024: नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान, जापान के इस संगठन को  मिला | Norwegian Nobel Committee decided to award the Nobel Peace Prize  2024 to the Japanese organisation Nihon Hidankyo

नाॅर्वेजियन नोबेल समिति की इस घोषणा ने दुनिया भर में इस सवाल को पैदा तो कर ही दिया है कि दुनिया का सबसे ताकतवर देश और उस देश का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिसने अपनी दूसरी पारी खेलते हुए पूरी दुनिया को अपनी ऊंगली पर नचाना शुरू कर दिया है और उस खेल में दूसरे ताकतवर देशों को भी चुनौती देते हुए एक नई व्यवस्था का निर्माण भी किया जा रहा है। जिसमें लोकतंत्र के अलावा पूंजी है, मुनाफा है। तब ये सवाल भारत के सामने भी आकर खड़ा हो जाता है कि न्यायपालिका क्या आज कुछ इस तरह से चल रही है जैसे देश में कुछ भी असामान्य नहीं है ? इन परिस्थितियों में भारत के भीतर अलग-अलग मुद्दों को लेकर अलग-अलग मापदंडों के आसरे लोकतंत्र, न्यायपालिका और संविधान पर सवाल खड़े होते रहते हैं। समाज के भीतर नफरत की खींची लकीरें, राजनीतिक तौर पर मुद्दों के आसरे देश के संवैधानिक संस्थानों का ढ़हना और इन सबके बीच न्यायपालिका की एक ऐसी भूमिका जो बार- बार अपने फैसलों से सब कुछ सामान्य होने का अह्सास कराती है जबकि कुछ भी ऐसा है नहीं। देश में शेयर बाजार चलाने वाली संस्था सेबी, देश की जांच ऐजेसियां ईडी, सीबीआई, आईटी, सरकारी विभागों पर आर्थिक निगरानी रखने वाली सीएजी यहां तक देश की राजनीतिक सत्ता ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाले पैनल से चीफ जस्टिस आफ इंडिया को बाहर कर दिया है, कहने को तो वह तीन सदस्यीय पैनल है उसमें एक सदस्य विपक्ष के नेता का होना कोई मायने नहीं रखता है क्योंकि उसमें दो सदस्य (बहुमत) तो सत्ताधारी ही हैं खुद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री।

सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि बात उस मानसिकता पर आकर खड़ी हो गई है जहां पर जज की कुर्सी पर तो कोई भी बैठ सकता है लेकिन न्याय तभी होगा जब संविधान के हिसाब से फैसले सुनाये जायें। सुप्रीम कोर्ट के भीतर सीजेआई के ऊपर जिस वकील ने जूता फेंका उस वकील के खिलाफ कोई भी कार्यवाही देश की किसी भी जांच ऐजेंसी (प्रशासन, पुलिस, सरकार) ने कुछ भी नहीं किया। यानी न्यायपालिका, संविधान और लोकतंत्र की रक्षा सब कुछ गायब हो चुकी है। जिस संविधान और लोकतंत्र की वजह से न्यायपालिका का अस्तित्व है उस पर रोज हमला हो रहा है और ये हमला होते - होते अदालत के भीतर जूता उछालने तक पहुंच गया है। देश संविधान से चलता है, संविधान के मातहत कानून का राज है, कानून का पालन कराने के लिए सरकारी ऐजेसियां हैं, संविधान की शपथ लेने वाली सरकार है यहां तक कि संविधान को माथे पर लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं और ये सब इस दौर में गायब हो गये हैं। तो क्या वाकई न्यायपालिका, लोकतंत्र, संविधान के अस्तित्व पर सबसे बड़ा संकट है। यानी सवाल लोकतंत्र की लौ को जलाये रखने का भी है।

भारत में न्यायपालिका की भूमिका क्या है? | Khan Global Studies Blogs

हर किसी को पता है कि बीते दशक में जनता से जुड़े हुए महत्वपूर्ण मामले सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर गये और उन पर दिये गये फैसलों से ऐसी हरकत कभी नहीं हुई जैसी बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के भीतर हुई। न्यायपालिका की सार्थकता तभी होती है जब वह लोकतंत्र के साथ खड़ा हो और लोकतंत्र के साथ खड़े होने का मतलब है संवैधानिक महत्व के मुद्दों को, नागरिक स्वतंत्रता के सवालों को प्राथमिकता के आधार पर ना सिर्फ सुना जाय बल्कि स्पष्ट और साफ शब्दों में ऐसे फैसले निकल कर आयें जो बतायें कि देश संविधान के हिसाब से चलता है। सीजेआई गवई इससे ज्यादा कुछ कह नहीं सकते थे तो कह दिया कि वो बात पुरानी हो गयी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टेलिफ़ोन पर सीजेआई से बात करके कह दिया कि उनकी खामोशी ने बहुत अच्छा काम किया है। इनसे बेहतर बात तो सीजेआई की बहन ने कही - ये एक व्यक्ति के ऊपर नहीं संविधान, लोकतंत्र के ऊपर हमला है और ये कहना सीजेआई की बहन भर का नहीं है बल्कि ये कहना तो सारे देशवासियों का है। कुछ ऐसी ही बात सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की पीठ के सदस्य रहे जस्टिस उज्जवल भुइंया ने भी कही है - - "जस्टिस बीआर गवई देश के चीफ जस्टिस हैं। यह कोई मज़ाक की बात नहीं है। जूता फेंकना पूरे संस्थान का अपमान है" । यहां यह कहना प्रासंगिक होगा कि सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा का दायित्व दिल्ली पुलिस का है और दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय यानी गृहमंत्री अमित शाह के अधीन है। गृहमंत्री अमित शाह के मुख से तो 'जूते' का "जू" तक सुनाई नहीं दिया देश को। संविधान सभा में लंबी चर्चा के बाद एक ऐसा संविधान देश को सौंपा गया है जिसके आसरे भारत में तानाशाही नहीं रेंग सकती है। भारत लोकतंत्र के आसरे ही दुनिया में अपनी पहचान बनायेगा।

नोबेल समिति ने नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान करते हुए बहुत साफ तौर पर कहा कि जिस महिला को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जा रहा है (मारिया कोरिना मचाडो) उसने हालिया समय में लेटिन अमेरिका में साहस का सबसे असाधारण उदाहरण पेश किया है। वह भी तब जब दुनिया भर में लोकतंत्र को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, लोकतंत्र के ऊपर काली छाया मंडरा रही है। तो क्या भारत में भी एक असाधारण तरीके से हिम्मत दिखाने की परिस्थितियां जन्म लेने लगी हैं। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि भारत की न्यायपालिका के फैसलों में न्यायकर्ता की निजी आस्था की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए लेकिन कई ऐसे फैसले सुप्रीम कोर्ट की चौखट से बाहर आये हैं जिन्होंने इस आस्था को भोथरा किया है उसमें से अयोध्या का रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद वाला फैसला भी एक है। राजनीति के लिए जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, भाषा,प्रांत सब कुछ मायने रखता है लेकिन जब न्याय का ककहरा यानी फैसला लिखते हैं तो उस वक्त जाति, धर्म, समुदाय, लिंग, भाषा, प्रांत कोई मायने नहीं रखता है लेकिन जिस तरीके से राजनीतिक विचारधारा का जूता उछाला जा रहा है उससे सुप्रीम कोर्ट की चौखट से निकलने वाला हर फैसला भोथरा दिखाई दे रहा है।

Supreme Court Cji Br Gavai Man Tries To Throw Object During Proceedings  News And Updates - Amar Ujala Hindi News Live - Sc:चीफ जस्टिस गवई पर जूता  उछालने की कोशिश करने वाला

सीजेआई जस्टिस बीआर गवई पर फेंके गये जूते की छाया सुप्रीम कोर्ट में वोट चोरी को लेकर सुनवाई कर रही जस्टिस सूर्यकांत (भावी चीफ जस्टिस आफ इंडिया) एवं जस्टिस जे बागची की बैंच के फैसले पर साफ - साफ दिखाई दी । व्यवस्थापिका और कार्यपालिका ने तो वर्षों पहले अपनी विश्वसनीयता खो दी है लेकिन अब न्यायपालिका भी अपनी विश्वसनीयता खोती दिखाई दे रही है जो लोकतंत्र के खात्मे का ऐलान करती नजर आती है। दुनिया में सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश के तौर पर अमेरिका की पहचान है। उसी देश का मौजूदा राष्ट्रपति पूरी दुनिया को अपनी ऊंगली पर नचाते हुए खुद को नोबेल शांति पुरस्कार देने की गुहार लगा रहा था और लोग मानने भी लगे थे कि हो सकता है नोबेल शांति पुरस्कार अमेरिकी राष्ट्रपति को मिल जायेगा लेकिन उसी शांति पूर्ण तरीके से नोबेल समिति ने यह कह कर नकार दिया कि न तो ये नोबेल के विचारों से मेल खाता है और न ही नोबेल सम्मान की पहचान के दायरे में फिट बैठता है। 14 जनवरी 2012 को मारिया कोरिना मचाडो उस समय सुर्खियां में आई थी जब उसने उस वक्त के राष्ट्रपति को उनके भाषण के बीच खड़े होकर उन्हें चोर कहते हुए लोगों की जप्त की गई सम्पति को वापस करने की मांग की थी। भले ही राष्ट्रपति ने मारिया को महिला कहते हुए नजरअंदाज कर दिया लेकिन दुनिया की तमाम बड़ी हस्तियों द्वारा वेनेजुएला के गले में तानाशाही का पट्टा लटका दिया गया। 2024 में मचाडो ने राष्ट्रपति की दावेदारी की जिसे शाजिसन खारिज कर दिया गया। तब मारिया ने दूसरी पार्टी को समर्थन देकर राष्ट्रपति का चुनाव जितवा दिया लेकिन तानाशाही सरकार ने चुनाव परिणाम को मानने से इंकार कर दिया।

वेनेजुएला की मारिया मचाडो को नोबेल शांति पुरस्कार - dainiktribuneonline.com

वेनेजुएला  सरकार की तानाशाही पर नोबेल समिति ने मारिया कोरिना मचाडो को यह कहते हुए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा कि लोकतंत्र की लौ बुझनी नहीं चाहिए। इसने मौजूदा वक्त में दुनिया की हर सत्ता और शासन व्यवस्था के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं जिसमें भारत भी अछूता नहीं है। भारत सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति, संविधान, लोकतंत्र और न्यायपालिका को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। सवाल ये नहीं है कि सीजेआई जस्टिस बीआर गवई दलित हैं या ब्राह्मण दरअसल वे देश की सबसे बड़ी अदालत के सबसे बड़े न्यायमूर्ति हैं और असहमति का जूता हर मुद्दे पर हर दम उछाला जा रहा है क्योंकि भारत की संसदीय राजनीति उन मुद्दों में उलझ चुकी है जहां उसे लगने लगा है कि राजनीतिक तौर पर चुनावी जीत हार में ही उसकी मौजूदगी उसके अस्तित्व से जुड़ी हुई है। जिसके चलते वे सोच भी नहीं पा रहे हैं कि सवाल तो लोकतंत्र के अस्तित्व का है, सवाल तो संविधान के अस्तित्व का है, सवाल तो आने वाली पीढ़ी को कौन सा भारत सौंपने का है ? यानी भारत में लोकतंत्र, संविधान और न्यायपालिका बचेगा या नहीं बचेगा। क्योंकि देश राजनीतिक सत्ता के आदेशों तले या फिर उसके ईशारों तले एक खामोशी को ओढ़कर राजनीतिक तंद्रा में खो चुका हो तो फिर सवाल खड़े होते हैं कि संसद लोकतंत्र का मंदिर कैसे हो सकती है?, सुप्रीम कोर्ट न्याय का मंदिर कैसे हो सकता है ? जाति, धर्म, सम्प्रदाय, लिंग, भाषा, प्रांत कोई भी हो महत्वपूर्ण तो संविधान ही है और मौजूदा राजनीतिक सत्ता उसका ही बलात्कार करने पर आमदा है ! 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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October 12, 2025
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बिल्कुल समाप्त हो चुकी भूमिहार विचारधारा की राजनीति की फिर से पुनर्वापसी होगी और भूमिहारों के दिन बहुरेंगे ?

अगले ही चुनाव में एक अन्य भूमिहार के समर्थन में खुलकर उतर गया लेकिन दुर्भाग्य से वह उम्मीदवार 65 वोट के अंतर से हार गया ।

मेरे बहुतेरे भूमिहार मित्र के द्वारा लिखे गए उनके कमेंट्स पढ़कर उनके मन में उठ रहे कौतूहल के मद्देनजर आज मैं पूर्ववर्ती भूमिहार विचारधाराधारा और उसके तहत की जाने वाली राजनीति पर गहन चर्चा हेतु उपस्थित हुआ हूँ और मुझे पता है कि ये चर्चा थोड़ी लंबी होगी । सर्वप्रथम चर्चा की शुरुआत मैं आपराधिक छवि वाले भूमिहारों के विरोध के कारण पर चर्चा करना चाहूंगा और ऐसे लोगों से भूमिहार समाज को कैसे प्रत्यक्ष और परोक्ष नुकसान हो रहा है, इसपर भी प्रकाश डालने का प्रयास करूंगा। बात सन 2001 की है, मेरे पंचायत में मुखिया का चुनाव होना था , बहुत सारे लोगों ने मेरे पिता को मुखिया चुनाव लड़ने के लिए अनुरोध किया लेकिन मेरे पिता ने मेरे  अपने चाचा लोगों के आंतरिक विरोध और जलन की भावना को समझते हुए खुद चुनाव लड़ने की बजाए  दुराचारी भूमिहारों द्वारा प्रस्तावित एक अनपढ़ और चरित्रहीन भूमिहार को ही चुनाव लड़ने हेतु अपना समर्थन दे दिया और नतीजा यह हुआ कि वह चुनाव तो जीत गया लेकिन सत्ता पाकर उसके अहंकार में आकर उसने पढ़े लिखे और संभ्रांत भूमिहारों पर ही  दमन करना शुरू कर दिया। कई नौकरी पेशेवर भूमिहारों की नौकरी खत्म करवाने के उद्देश्य से उस दुराचारी भूमिहार मुखिया ने अनुसूचित जाति कानून के तहत झूठे मुकदमे पैसे देकर करवा दिए और कई अन्य तरह के आपराधिक मुकदमे उसने अन्य भूमिहारों को तंग करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर किया जिसकी वजह से बहुत सारे भूमिहार आर्थिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए ।  मैं इन सारे घटनाक्रम को एक एक करके देख और परख रहा था और फिर मैंने फैसला कर लिया कि उस दुराचारी भूमिहार की सत्ता का अंत करके रहूंगा  । मैने अगले ही चुनाव में एक अन्य भूमिहार के समर्थन में खुलकर उतर गया लेकिन दुर्भाग्य से वह उम्मीदवार 65 वोट के अंतर से हार गया ।


बाद में आगे के चुनाव में जब उस दुराचारी भूमिहार के राजनीति का मैंने अंत किया तो मुझपर अकेले में जानलेवा हमला उसने करवा दिया। खैर मेरे सगे संबंधी अच्छे अच्छे पद पर विराजमान हैं जिसके कारण अंततोगत्वा सामाजिक वर्चस्व और सहानुभूति मेरे पक्ष में रही । अब यहाँ सबसे गंभीर प्रश्न ये उठ खड़ा हुआ कि जब मेरे पिता जी को संभ्रांत भूमिहारों ने मुखिया चुनाव लड़ने हेतु अनुरोध किया था, तो उन्हें लड़ना चाहिए था । बजाए इसके उन्होंने चंद दुष्टात्मा भूमिहारों के दुष्टता से कुपित होकर खुद चुनाव नहीं लड़ने का जो फैसला किया उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि उस दुराचारी भूमिहार ने सत्ता पाकर तमाम झूठे मुकदमे करवाकर एक से एक पढ़े लिखे भूमिहारों का आज से 20 वर्ष पहले करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान उन झूठे मुकदमों को झेलने में करवा दिया । इन घटनाओं ने मुझ जैसे लोगों को काफी अंदर से झकझोर दिया और फिर मैंने प्रण कर लिया कि ऐसे दुराचारी लोगों का अंत करके ही दम लूंगा और मेरा यह प्रयास अनवरत जारी है और आजीवन जारी रहेगा । यहां एक बड़ा ही माकूल बात मैं बताना चाहता हूँ कि जैसे ही मुझपर हुए हमले की खबर मेरे खेत को जोतकर अपनी आजीविका चलाने वाले मल्लाह जाति के दो अलग अलग लोग और दुसाध जाति के दो अन्य लोगों को मिली , तुरंत वो लोग मेरे लिए अपना जान देने की बात कह मेरे दरवाजे हाजिर हो गए और मुझसे आज्ञा मांगने लगे लेकिन मैंने उनको शांत किया । यहाँ एक बात और देखने को मिली कि दो कुर्मी जाति के भी बटाईदार मेरे  थे जो मेरा खेत जोतते थे , वो लोग मजे लूटने लगे  क्योंकि उनको इस बात का अब घमंड हो चुका है कि उनकी बिरादरी का अब बिहार का राजा है , इसलिए वो ज्यादा चालाक समझने लगा है। एक  और दीगर बात यह थी कि एक भूमिहार जिसे कि मैंने अपनी जमीन जोतने के लिए लगभग मुफ्त में दे रखा था पिछले 20 वर्षों से वह भी मेरे साथ गद्दारी कर रहा था, चंद  दुष्ट भूमिहारों के बहकावे में आकर। मुझे एक बात समझ में आई कि इस सारे घटनाक्रम में दुष्ट विचार के लोग एक साथ खड़े नजर आए तो वहीं अच्छे विचार के सभी जाति के लोग मेरे साथ खड़े नजर आए ।

जमींदार 🚩🚩 #jamindar #jamin #bhumihar ...


बस यही मैं देखना और समझना चाह रहा था जो मुझे समझ में आ गया। अब आप ही बताइए कि आज के जमाने में कोई मल्लाह या दुसाध मुझे मालिक कहकर संबोधित करता है और मेरे लिए अपना जान न्यौछावर करने की भी पेशकश करता है तो भला मैं कैसे उसे नजर अंदाज कर सकता हूँ । यही कारण है कि आज भी मैं अपनी जमीन उन्हीं लोगों को देकर खुद की आजीविका के लिए नौकरी के साथ संघर्ष कर रहा हूं और मुझे इस बात की संतुष्टि है कि पूर्वजों द्वारा दी गई  मुझे संपत्ति से  6 परिवारों का भरण पोषण मजे से हो रहा है।


यहाँ एक बात और बताना चाह रहा हूँ कि मैं अपने लीची के बगीचे को पिछले 15 वर्षों से एक गरीब भूमिहार को बहुत ही सस्ते दर पर लगातार देता आ रहा हूँ जिससे कमाई करके उसने पक्का का मकान भी बना लिया है। मुझे खुशी मिलती है कि कोई अपने पुरुषार्थ से मेरे सहयोग से कुछ अच्छा करता है तो । इस सोच का एक दूसरा पहलू यह भी है कि मैं अपनी इन्हीं सोच के कारण हमेशा आर्थिक रूप से खुद को उतना सशक्त नहीं कर पाता हूँ जितना कि मुझे होना चाहिए क्योंकि मुझे ज्यादा आक्रामकता पसंद नहीं और मैं सबका साथ सबका विकास की विचारधारा का पोषक रहा हूँ ।


यह सारे गुण मैंने अपने पिता से सीखे हैं । मेरे पिता जी जिस समय भारतीय रेल में स्टेशन प्रबंधक थे, उस समय हमलोग के सरकारी आवास पर महीने में 50 से 100   अलग अलग जगह के भूमिहार समाज के लोगों का आना जाना और  उनसे मिलना जुलना और खाना पीना लगा ही रहता था। मैंने देखा कि पिताजी धन कमाने की बजाए लोगों से आशीर्वाद और उनसे प्रेम रखने के ज्यादा हिमायती थे और यही वजह थी कि बाबू जी को सभी लोग बहुत प्रेम करते थे । मैं भी पूरा प्रयास करता हूँ कि भले मुझे आर्थिक तकलीफ झेलनी पड़े लेकिन कोई मेरे  संसाधनों से लाभान्वित हो रहा है , तो उसको होना ही चाहिए । अभी हाल में ही मैंने दूसरों की भलाई के लिए पैसों का प्रबंध उधार लेकर किया क्योंकि हाल में ही मेरे नियोक्ता ने मेरे वेतन के तहत मिलने वाले  Fooding Allowance के तहत मुझे दी जाने वाली राशि में से 8000 रुपए मासिक की कटौती कर दी जिससे मैं आर्थिक रूप से बैक फूट पर आ गया हूँ लेकिन बावजूद इस अतिरिक्त कष्ट के मेरे अंदर का वो दानवीर वाला भाव प्रभावित नहीं हुआ है क्योंकि मुझे ईश्वर पर भरोसा है कि जिस ईश्वर ने मुझे जिंदगी दी है , वही मेरे लिए आहार की भी व्यवस्था करेंगे ।


अब आइए जरा बिहार सरकार की हालिया राजनीति और इस सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों का भी तीक्ष्ण अवलोकन करते हैं और इसपर चर्चा करते हैं । वैसे तो 2005 से बिहार में भाजपा की सरकार है और तमाम लोगों ने ये भ्रम फैलाकर रखा हुआ है कि भाजपा यानि भूमिहारों की सत्ता और इनकी ही सरकार , जबकि असलियत यह है कि ये कुर्मी का राज चल रहा है, न कि भूमिहारों का और विगत 20 वर्षों से चल रहे इस कुर्मी राज में भूमिहार केवल इस्तेमाल हुआ है और बदनाम भी । भूमिहारों को विगत 20 वर्षों में सिर्फ कुर्बानी ही देनी पड़ी है और इनको प्राप्ति के नाम पर कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है । हां चंद भूमिहार दलाल लोग जरूर अति धनाढ्य हुए हैं लेकिन वो केवल वैसे लोग हुए हैं जिन्होंने अपने ही भूमिहार समाज की बलि लेने में कोई कसर नहीं बाकी रखी है।


सरकारी नौकरियों को यदि देखा जाए तो पिछले 20 वर्षों में सर्वाधिक लाभ कुर्मी जाति के लोगों ने उठाया है जबकि बिहार में कुर्मी जाति की संख्या भूमिहार जाति का एक तिहाई है।

भूमिहार समाज ...


फिर भी आज कुर्मी इतनी चालाक और महत्वाकांक्षी जाति बन चुकी है कि ये भूमिहारों को इस्तेमाल कर अपना निजी लाभ लेती जा रही है । वैसे कुर्मी जाति के बारे में एक आम अवधारणा प्रचलित है कि ये लोग दरभंगा महाराज को भी बेचकर खा गया यानि उन्हें भी ठग लिया । कहने का तात्पर्य यह है कि सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हम भूमिहारों को सरकारी नौकरियों से दूर कर दिया गया ताकि हम संघर्ष करने को मजबूर हों ।


भूमिहार चूंकि मूलरूप से कृषक जाति है, इसलिए खेती किसानी पर आज भी भूमिहारों की अधिकांश निर्भरता रहती है । बिहार में बाढ़ और सुखाड़ हर वर्ष लगा ही रहता है और इससे सुरक्षा देने के लिए ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजना शुरू की गई थी जो कि एक अच्छा सुरक्षा आवरण था किसानों के लिए । 2017 के  खरीफ फसल तक , जबतक PMFBY योजना बिहार में लागू थी , किसान इस बात के लिए निश्चिंत रहते थे कि देर सबेर उनको हुई आर्थिक क्षति का मुआवजा उनको PMFBY के बीमा सुरक्षा योजना के तहत मिल ही जाएगा लेकिन नीतीश सरकार में बैठे शीर्ष अधिकारियों को जैसे ही इस बात की भनक लगी कि इस योजना से भूमिहार लाभान्वित हो रहा है, नीतीश सरकार ने इस योजना को फौरन यह कहकर बंद कर दिया कि बिहार सरकार को इस बीमा योजना के तहत बतौर प्रीमियम राशि सालाना 500 खर्च करनी पड़ रही है , जिसके लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं । आज यही नीतीश सरकार मुफ्त की पेंशन योजना और  लूट खसोट वाली राशन कार्ड योजना पर बड़ी राशि बहा रही है और अभी पिछड़ी जाति की महिलाओं के खाते में 10000 की  मुफ्त रेवड़ी बांटी गई है , लेकिन किसानों को उचित सुरखा आवरण देने के लिए इस सरकार के पास पैसे नहीं हैं। अब आप ही बताइए कि ये कौन सी विचारधारा की राजनीति बिहार में चल रही है जिसमें भूमिहार को बतौर मुखौटा तो आगे रखा जाता है लेकिन भूमिहारों का ही जड़ काटा जा रहा है जबकि हमलोग सभी जातियों के पोषक रहे हैं । इसलिए मैं आज के इस छद्म भूमिहार राजनीति का घोर विरोधी हूँ और पूर्वर्ती भूमिहार विचारधारा वाली राजनीति को फिर से बिहार में देखना चाहता हूँ , जहां सबका साथ और सबका विकास एक सच्चाई भरे एहसास के साथ अमल में लाया जा सके ।


इसलिए इस चर्चा को विराम  देने से पहले मैं फिर अपने शुभेक्षु भूमिहार मित्रों से एक ही वही प्रश्न कर रहा हूँ जो कि इस चर्चा का शीर्षक भी है कि क्या " 
बिल्कुल समाप्त हो चुकी भूमिहार विचारधारा की राजनीति की फिर से पुनर्वापसी होगी और भूमिहारों के दिन बहुरेंगे ?

अपलोगों की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।


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ब्रह्मर्षि विचारक " राजीव कुमार " की कलम से  
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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October 12, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 30

इतना तो तय है कि पीएम ने सीजेआई को सद्भाविक टेलिफ़ोन तो किया नहीं होगा !

Close Down Parliament If Supreme Court Has To Make Law: Nishikant Dubey  News In Hindi - Amar Ujala Hindi News Live - Sc Row:निशिकांत दुबे बोले-  सीमा से बाहर जा रहा सुप्रीम

भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे उवाच - यहां पूरा जजमेंट लिखा हुआ है, राष्ट्रपति का क्या अधिकार है, प्रधानमंत्री का क्या अधिकार है, हमारे पार्लियामेंट का क्या अधिकार है, हमारे सुप्रीम कोर्ट का क्या अधिकार है, हाईकोर्ट का क्या अधिकार है सब कुछ लिखत-पढ़त है। तो तुम नया कानून कैसे बना दिये, तीन महीना कहां से लेकर आ गये कि राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर फैसला करना है। ये किस कानून में लिखा हुआ है। इसका मतलब ये है कि आप देश को एन आर सी की तरफ ले जाना चाहते हो और एन आर सी इस देश में बर्दास्त नहीं होगी। जब नया कानून आयेगा, जब नया पार्लियामेंट बैठेगा इस पर विस्तृत चर्चा होगी और फिर से नेशनल ज्यूडीसरी अकाउंटबिलटी सिस्टम जो हमने NJSE बनाया था जिसमें राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होगा, प्रधानमंत्री का कैसे चुनाव होगा वो तो संविधान में लिखा हुआ है लेकिन आपके भाई भतीजावाद के आधार पर जज का चुनाव नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट में एससी जज नहीं है, एसटी जज नहीं है, ओबीसी जज नहीं है। मैक्सिमम 78-80 पर्सेंटेज जो हैं केवल और केवल जो हैं स्वर्ण जाति के जज बैठे हुए हैं और अपना कानून चलाओगे, ये कानून नहीं चलेगा। ये प्रतिक्रिया है भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट की क्रिया पर जो उसने जनता द्वारा अपने वोट के माध्यम से चुनी हुई राज्य सरकारों द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी दिये जाने की समय सीमा तय करने में की थी। अप्रैल 2025 - निशिकांत दुबे उवाच - आज जो है ये देश राम, कृष्ण, सीता, राधा, द्वादश ज्योतिर्लिंग से लेकर 51 शक्ति पीठ का है। सनातन की परम्परा है। आप जब राम मंदिर का विषय होता है तो आप राम मंदिर से कहते हो कागज दिखाओ-कागज दिखाओ। कृष्ण जन्मभूमि का मामला आये मथुरा में तो कहोगे कि कागज दिखाओ। आप जब शिव की बात होगी, ज्ञानव्यापी मस्जिद की बात आयेगी तो कागज दिखाओ और आज केवल आप मुगलों के आने के बाद जो मस्जिद बने हैं उसके लिए कहते हैं आप कागज कहां से दिखाओगे। इस देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए केवल और केवल सुप्रीम कोर्ट जिम्मेवार है। सुप्रीम कोर्ट का एकमात्र उद्देश्य है।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ट्यूट जो उन्होने सीजेआई गवई से टेलिफ़ोन पर बात करने के बाद एक्स पर साझा किया - - Spoke to Chief Justice of India Justice BR Gavai ji. The attack on him earlier today in the Supreme Court premises has angered every Indian. There is no place for such reprehensible acts in our society. It is utterly condemnable. I appreciated the claim displayed by Justice Gavai in the face of such a situation. It highlights his commitment to volues of justice and strengthening the sprit of our constitution. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कैमरे के सामने आकर कहा - - देखिए घटना निंदनीय है। कोई भी भारतीय इसके पक्ष में नहीं हो सकता है। कोर्ट चल रहा था। उस समय इस तरह की घटना हुई और हम इसकी निंदा करते हैं लेकिन साथ में जिस तरह से माननीय प्रधान न्यायाधीश ने संयम दिखाया उसकी भी हम सराहना करते हैं।

TNP News - CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना पर पीएम मोदी का सख्त रिएक्शन –  “हर भारतीय आहत है, न्याय पर हमला बर्दाश्त नहीं”

हर कोई को लगेगा कि प्रधानमंत्री और कानून मंत्री ने चीफ जस्टिस के साथ घटी घटना की निंदा की भले ही घंटों बाद की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल किसी ने भी अपने व्यक्तव्य में सीजेआई गवई पर जूता उछालने वाले वकील पर कार्रवाई करने की बात नहीं कही है ना ही घटना कारित करने वाले के द्वारा लगाये गये नारे "सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान" की निंदा की है । जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि प्रधानमंत्री और कानून मंत्री ने बिहार चुनाव में पड़ सकने वाले नकारात्मक प्रभाव के मद्देनजर डेमेज कंट्रोल को साधने के लिए सिर्फ और सिर्फ रस्म अदायगी की है। भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे ने जिस तरह से खुले आम न केवल सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिस आफ इंडिया और संविधान पर अपमानजनक व्यक्तव्य दिया तब तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोई व्यक्तव्य देने के बजाय चुप्पी साध कर अपने सांसद की पीठ ही थपथपाई थी। प्रधानमंत्री और कानून मंत्री कह रहे हैं कि कोई भी भारतीय इस घटना के पक्ष में नहीं हो सकता तो जो बीजेपी और आरएसएस की टोल आर्मी सोशल मीडिया पर जूताजीवी का महिमामंडन कर रहे हैं तो क्या ये माना जाय कि वे सारे लोग भारतीय नहीं हैं। फिर तो उन सभी पर देशद्रोह वाली धाराओं के तहत मामला दर्ज कराने की बात प्रधानमंत्री और कानून मंत्री को करनी चाहिए थी जो वो नहीं कर रहे हैं।

CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना से पूरे देश में आक्रोश, PM मोदी ने की कड़ी  निंदा, बोले - हर भारतीय नाराज

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सीजेआई बीआर गवई को टेलिफ़ोन करना भी सद्भाविक ना होकर अपने भीतर बहुत कुछ समेटे हुए है। ध्यान दें तो पीएम मोदी ने सीजेआई रहे रंजन गोगोई को रिटायर्मेंट के बाद राज्यसभा मेम्बर बनाया। उसके बाद चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड के घर गणेश पूजा करने चले गए। इनके ही कार्यकाल में सीजेआई गवई से पहले वाले सीजेआई संजीव खन्ना पर इनकी ही पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे और तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अमर्यादित शब्दों का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को कटघरे में खड़ा करते हुए देश में अराजकता और धार्मिक दंगा करवाने वाले अनर्गल आरोप लगाये। इसी कालखंड में सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार चार सीनियर मोस्ट जजों ने सार्वजनिक तौर पर प्रेस कांफ्रेंस करके सुप्रीम कोर्ट के भीतर की नंगी हकीकत को रोस्टर सिस्टम के जरिए उजागर किया। इसी दौर में जजों को भर्ती करने वाले सुप्रीम कोर्ट के कालेजियम सिस्टम की जगह नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन बनाया गया और पीएम मोदी के कालखंड में सुप्रीम कोर्ट के भीतर चल रही सुनवाई के दौरान ही एक वकील ने चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई के ऊपर जूता उछाला।

बेहद निंदनीय': प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीफ जस्टिस बीआर गवई पर हमले की  निंदा की

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सीजेआई गवई को टेलिफ़ोन करने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। क्या पीएम मोदी ने सीजेआई गवई से सिर्फ इसलिए टेलिफ़ोन पर बात की कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर उन पर जूता उछाला गया या फिर बात इसलिए की कि सुप्रीम कोर्ट इस समय देश के भीतर बड़े बन चुके उस मुद्दे की सुनवाई कर रही है, अगर उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के खिलाफ फैसला दे दिया तो एक झटके में भारत की समूची संसदीय राजनीतिक व्यवस्था जिसे चुनाव के जरिए चुनाव आयोग चला रहा है ना सिर्फ मटियामेट हो जायेगी बल्कि 2024 के आम चुनाव को लेकर विपक्ष जो सवाल उठा रहा है उस पर भी सही का निशान लग जायेगा। जिसका सीधा इफेक्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन पर पड़ेगा ? यह भी सवाल खड़ा हो जायेगा कि क्या वाकई सरकार ने चुनाव आयोग को मैनेज कर लिया है ? चुनाव आयोग ने वोटर को मैनेज कर लिया है ? वोटर लिस्ट जिस तरीके से बनाई जा रही है वहां पर जनता कोई भी फैसला दे लेकिन हर फैसला सत्ताधारी बीजेपी, पीएम मोदी के हक में होगा ? सुप्रीम कोर्ट के भीतर जिस तरह से भरी अदालत में सीजेआई गवई पर जूता उछाला गया उसने भी इस सवाल को फिर खड़ा कर दिया है कि "क्या भारत में वाकई कानून का राज है ? क्योंकि चंद दिनों पहले किसी और शख्स ने नहीं बल्कि खुद सीजेआई गवई ने मलेशिया में इस सवाल पर कहा था कि रूल आफ लाॅ कोई बंच आफ नियम नहीं है। रूल आफ लाॅ का मतलब है कानून के हिसाब से चलना। यानी बुलडोज़र कानून नहीं है। लेकिन जिस वक्त सीजेआई गवई मलेशिया में रूल आफ लाॅ का जिक्र कर रहे थे उसी समय यूपी के हिस्सों में सीएम योगी का बुलडोज़र कानून अल्पसंख्यकों की छाती रौंद रहा था।

सुरक्षा जांच में सबूत का बोझ

रूल आफ लाॅ के जरिए ही चैक एंड बैलेंस की परिस्थिति होती है ताकि कोई ताकतवर तानाशाह के रूप में उभर कर सामने ना आ जाए और यही चैक एंड बैलेंस इस दौर में गायब हो गया है । जूता कांड को अंजाम देने वाले 71 वर्षीय एडवोकेट राकेश किशोर का कहना है कि यह क्रिया की प्रतिक्रिया है। मैंने कोई गुनाह नहीं किया है इसलिए मुझे कोई पछतावा भी नहीं है। उसका पूरा आंकलन धर्म के लिहाज से था। एडवोकेट राकेश किशोर - - मैं भी कम पढ़ा लिखा नहीं हूं। मैंने भी बी एससी, पीएचडी, एल एलबी किया है। मैं भी गोल्डमेडलिस्ट हूं। ऐसा नहीं है कि मैं नशे में था या मैंने कोई गोलियां खा रखी थी। उन्होने एक्शन किया मेरा रिएक्शन था। वैसे क्रिया-प्रतिक्रिया वाली बात पहली बार नहीं कही जा रही है इसके पहले भी 2002 में आरएसएस के सर संघचालक सुदर्शन गुजरात के भीतर घटी अति निंदनीय घटनाओं के संदर्भ में क्रिया-प्रतिक्रिया का जिक्र कर चुके हैं।

Supreme Court Decision Today On Demonetisation 10 Facts to know what  happened since Govt Note Ban Move | देश में हुई नोटबंदी के बाद से क्या हुआ?  10 प्वॉइंट्स में जानें सुप्रीम

नोटबंदी का मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर गया। नोटबंदी जिस बात को कह कर की गई थी (ब्लैकमनी वापस आयेगी) वह तो हुआ नहीं फिर भी सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी के पक्ष में खुलकर खड़ा हो गया। व्यापारियों और बनियों के साथ कदमताल करने वाली बीजेपी ने जीएसटी लागू करके उसी तबके को हिलाकर रख दिया। सुप्रीम कोर्ट के भीतर सवाल जबाव होते रहे नतीजा सिफर रहा आखिरकार सरकार ने 8 साल बाद खुद मान लिया कि स्लैब 5-6 नहीं 2 होने चाहिए। मगर इससे बड़ा बेशर्मी भरा लतीफा दूसरा नहीं होगा कि मोदी सरकार ने अपने ही फैसले के खिलाफ जाकर दूसरा फैसला ले आई वह भी आठ साल बाद इसके बाद भी उत्सव मनाते हुए कह रही है कि हमने मंहगाई दूर कर दी, मुश्किल हालात कम कर दिए। पैगासस के जरिए हो रही जासूसी का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जानकारी मांगी। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा - राष्ट्रहित की आड़ लेकर जानकारी देने से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट को सांप सूंघ गया। इलेक्ट्रोरल बांड्स का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लम्बी ना नुकुर के बाद सरकार ने जानकारी मुहैया कराई। अदालत ने इलेक्ट्रोरल बांड्स को गैरकानूनी ठहराया यानी बसूली गई सारी रकम एक झटके में ब्लैकमनी में तब्दील हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने ब्लैकमनी जप्त करने के बजाय उसे पार्टियों के पास ही रहने दिया। राफेल की डील गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट थी। अचानक अनिल अंबानी की एंट्री हुई और कीमत आसमान पर पहुंच गई। मामला न्याय हित में न्यायपालिका गया। अदालत ने सरकार से जानकारी चाही। सरकार ने एकबार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा - राष्ट्रहित की आड़ लेकर जानकारी देने से मना कर दिया। अदालत ने भी खामोशी बरत ली। महाराष्ट्र में उध्व ठाकरे की सरकार गिरा दी गई। शिवसेना का जरासंधी वध कर दिया गया। राज्यपाल की भूमिका संदिग्ध थी। मामला सुप्रीम कोर्ट गया। अदालत ने फैसला दिया कि सब कुछ गैरकानूनी हुआ है फिर भी गैरकानूनी सरकार को बेधड़क चलने दिया गया। कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों से भृष्टाचार को मान्यता दी, नैतिकता को मरने दिया, विचारधारा को समाप्त होने दिया, संवैधानिक मूल्यों की अर्थी निकलने दी। चैक एंड बैलेंस को गधे के सींग माफिक गायब होने दिया गया। सत्ता को अपने अनुकूल वातावरण बनाने दिया गया। ये प्रक्रिया ऊपर से नीचे तक फैलती चली गई, तभी तो बिना हिचकी लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीफ जस्टिस आफ इंडिया को राज्यसभा की मेम्बरी देते हैं, पूजा करने घर पहुंच जाते हैं, टेलिफ़ोन पर बात करने लगते हैं और अपने ही सांसद के जरिए यह कहलवाने से भी नहीं कतराते कि दरअसल हर मुसीबत की जड़ सुप्रीम कोर्ट है।

Supreme Court of India | India

100 साल से बोये गए विष बीज ने पिछले साढ़े ग्यारह साल में ऐसी फसल पैदा कर दी है जो उस मानसिकता की शिकार नहीं बल्कि उसी मानसिकता में जीने लगी है। तभी न पीएम मोदी दबी जबान में बोल रहे हैं। चुनाव आयोग पर लगने वाले आरोपों पर सफाई देने उतर पड़ने वाली पीएम मोदी की पूरी टीम सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई के ऊपर उछाले गये जूते की निंदा करने क्यों नहीं उतरी उल्टा जूताजीवी के साथ खड़ी दिख रही है। इन सब डरावनी परिस्थितियों के बावजूद भी भारत उस संविधान के आसरे चलता है जिसमें समानता का जिक्र है, हर किसी को बराबरी का हक देने-दिलाने का जिक्र है और शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर हो रही ऐसे मुद्दे की सुनवाई जिस पर अगर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़े कर दिए तो मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में पूरी चुनावी प्रक्रिया की पोल पट्टी खुल जायेगी शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर चीफ जस्टिस आफ इंडिया के साथ खड़े नजर आने लगे हैं, टेलिफ़ोन करने लगे हैं। शायद इसीलिए 2014 के बाद से सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस आफ इंडिया को लेकर सार्वजनिक तौर पर खुलकर बयानबाजी होने लगी है और बयानबाजी होते - होते बात इतना आगे निकलकर आ गई कि वह जूता उछालने में तब्दील हो गई है। तो क्या अब लोकतंत्र के हर पिलर को लगने लगा है कि क्या कल हमारा नम्बर आने वाला है ? मतलब देश दोराहे पर खड़ा है और चाबी विशेष विचारधारा में पक चुकी ट्रोल आर्मी जिसने देश की सबसे बड़ी अदालत का नामकरण किया है सुप्रीम कोठा (सुप्रीम कोर्ट) के पास है।

Acted under Divine Force : Lawyer who attacked (J) shows no remorse, says Ready to face Jail - Rakesh Kishore, who tried to hurt a shoe at CJI Gavai in the Supreme Court, claimed he acted under a divine force and was ready to face Jail, adding that he had no remorse.

अब अगर जूताजीवी वकील की बात पर यकीन किया जाय तो फिलहाल एक व्यक्ति है जिसने खुद को अवतारी घोषित किया है यानी ब्रम्हा, विष्णु, महेश और तमाम देवी-देवताओं का मिलाजुला स्वरूप तो क्या उसी ने वकील राकेश किशोर को सीजेआई बीआर गवई पर जूता फेंकने को कहा है? उसी ने अवतारी ने तमाम कथावाचकों को सनातन के नाम पर चीफ जस्टिस आफ इंडिया को अपमानित करने, चीर फाड़ करने की धमकियां दिये जाने की सुपारी दी हुई है? संदेश की सुईयां इसलिए उस ओर घूम रही हैं क्योंकि अभी तक सनातन के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वालों के खिलाफ सत्ता के द्वारा एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई गई है बल्कि उनके साथ मंच साझा करते हुए जरूर दिखाई दे रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में हंगामा: एडवोकेट ने CJI बीआर गवई की तरफ जूता फेंकने की  कोशिश की - lawyer rakesh kishor tried to throw shoe at cji br gavai in supreme  court -


सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई की कोर्ट नम्बर एक के भीतर वो हुआ जो भारत के इतिहास में पिछले साढ़े ग्यारह साल में देखना बचा था। वैसे देखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जजों ने भी दूसरे संवैधानिक संस्थानों और उसके मुखियाओं की माफिक सत्ता के सामने घुटने टेक दिए हैं फिर भी कोई न कोई ऐसा जज सामने आ ही जाता है जो देशवासियों की नजरों में न्याय के शासन के टूटते बजूद के बावजूद किसी कोने में न्याय पर आस्था को जिंदा रखता है। ऐसे ही जजेज के रूप में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना और वर्तमान सीजेआई जस्टिस बीआर गवई को कुछ हद तक रखा जा सकता है। 6 अक्टूबर 2025 दिन सोमवार सुप्रीम कोर्ट ही नहीं बल्कि भारत के माथे पर कभी न मिट सकने वाले काले धब्बे की मानिंद चिपकर रह गया है। वैसे जो भी घटनाक्रम घटित हुआ उसके लिए वर्तमान सत्ता तो जिम्मेदार है ही लेकिन खुद सुप्रीम कोर्ट और जस्टिस भी बराबर से जिम्मेदार हैं। सोमवार की घटना से यह भी साफ हो गया है कि जिस तरह का वातावरण मौजूदा सत्ता ने पिछले साढ़े ग्यारह साल में देश के भीतर बना दिया है उसमें देश को रंजन गोगोई, डीवाई चंद्रचूड जैसे जजेज की ही जरूरत है जो संविधान का राग तो पूरे लय के साथ अलापें लेकिन फैसले सत्तानुकूल दें ना कि तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना और देश के दूसरे दलित, प्रथम बौध्दिस्ट सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की तरह। नहीं तो वर्तमान सत्ता के सांसद निशिकांत दुबे, तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे लोगों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मान सम्मान को पैरों तले रौंदने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जायेगी और वह भी तब जब खुद ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने मान सम्मान पर की जा रही क्रिया पर प्रतिक्रिया देने से आंखे चुराई जा रही हो। सही मायने में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की कोर्ट नम्बर एक में जो हमला हुआ वो हमला सीजेआई जस्टिस बीआर गवई पर नहीं बल्कि भारत के संविधान पर खीझ भरा हमला है और इसके लिए कहीं न कहीं भारत की आवाम भी जिम्मेदार है अगर उसने वर्तमान सत्ता को 400 पार सीटें दे दी होती तो सांप भी मर जाता और लाठी भी नहीं टूटती यानी जब वर्तमान संविधान ही नहीं होता तो संविधान पर हमला भी नहीं होता।

BT Markets Survey: BJP को कितनी सीटें? मार्केट एक्सपर्ट्स ने सर्वे में कहा-  '400 पार' का लक्ष्य आसान नहीं... बताया क्या संभव - lok sabha election 2024  BT Markets survey bjp Target 400 paar not a piece of cake tuta - AajTak

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्यूट पर ही रिट्रीट कर आलोचनाओं की झड़ी सी लग गई है यानी कहा जा सकता है कि सीजेआई जस्टिस बीआर गवई को लेकर किये गये ट्यूट से प्रधानमंत्री अपने ही पितृ संगठन द्वारा पैदा की गई और खुद के द्वारा खाद-पानी देकर जवान की गई फौज के निशाने पर आ गये हैं। घटना घटित होने के तकरीबन 6 घंटे से भी ज्यादा समय गुजर जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्यूट किया - Spoke to Chief Justice of India Justice BR Gavai ji. The attack on him earlier today in the Supreme Court premises has angered every Indian. There is no place for such reprehensible acts in our society. It is utterly condemnable. I appreciated the claim displayed by Justice Gavai in the face of such a situation. It highlights his commitment to volues of justice and strengthening the sprit of our constitution. जिस पर देश भर में साढ़े ग्यारह साल से लहलहा रही नफरती फसलें प्रधानमंत्री के ट्यूट पर रिट्यूट करते हुए लिख रही हैं Don't just tweet - take action against those celebrating the incident many of those celebrating are people you follow on Twitter. Tatuvam asi - You should have condemned when Gavai insulated our Sanatana Dharma modiji. 

हर भारतीय गुस्से में… सुप्रीम कोर्ट में CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना पर  PM मोदी की तीखी प्रतिक्रिया | Today News


Kanimoshi - With all due respect Prime Minister, please don't diminish your office by tweeting like a by stander. I apologize for my bluntness, but silence when the chief justice brazenly demanded Hindu gods was deafening. And now when Hindus veact with justified outrage, you appear suddenly alarmed ? It any one deserves reprimand, it is the CJI - who, through his vile and disgraceful remarks. Insulted a billion Hindus. Don't misplace your moral compass. ब्लागर ध्रुव राठी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्यूट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है कि Tweeting will not do anything. If you are truly against this, slap NSA and UAPA against the Anti-nationals who are supporting this attack online and encouraging mob violence.

आज के समय में भी हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में ऐसे न्यायाधीशों की बहुतायत हो चली है जो एक विशेष विचारधारा से पोषित पल्लवित हैं और यह उनके द्वारा दिये जा रहे फैसलों से साफ साफ परिलक्षित होता है। तत्कालीन सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस बेला त्रिवेदी तो इसके जीते जागते नमूने हैं। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने भी राहुल गांधी पर कमेंट करके सुर्खियां बटोरी है। होने वाले चीफ जस्टिस आफ इंडिया को भी उसी कतार में इसलिए खड़ा किया जाने लगा है कि हाल ही में उनकी कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं जो सत्ता पक्ष के साथ उनकी अंतरंगता को बखूबी प्रदर्शित करती हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज ने सत्तापक्ष से जुड़े एक संगठन के कार्यक्रम में तो खुलेआम जो कुछ कहा निश्चित तौर पर उसे समाज विघटन के रूप में देखा गया और सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी इसे मौन समर्थन देती है।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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October 12, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 29

विक्रम के काधे से उतरने को तैयार नहीं हो रहा बेताल

Modi@20: कैसे एक कार्यकर्ता से गुजरात के सफल CM फिर देश के PM बने नरेंद्र  मोदी, अमित शाह ने बताया सफर - amit shah praises PM narendra modi on Release  of the

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह (गुजरात लाॅबी) को ये मुगालता हो गया है कि वो ही बीजेपी के पर्यायवाची बन गये हैं और उनके ना रहने पर बीजेपी खत्म हो जायेगी जबकि हकीकत ये है कि बीजेपी मोदी-शाह के रहते खत्म हो चुकी है ! बीजेपी का केवल नाम रह गया है सही मायने में बीजेपी कांग्रेस पार्ट टू बन चुकी है। बीजेपी के साथ चिपका लेबल "पार्टी विथ डिफरेंट" को मोदी-शाह की सत्ता लोलुपता ने बहुत पहले निगल लिया है। बीजेपी के खांटी नेता और कार्यकर्ता दूसरी पार्टी के भृष्ट आयातित नेताओं की वजह से खुद को अपमानित और दोयम दर्जे का महसूस कर रहे हैं। सौ टके की बात तो ये है कि जिस दिन बीजेपी मोदी-शाह के साये से मुक्त होगी उसके अच्छे दिन शुरू हो जायेंगे। गुजराती जोड़ी ने पार्टी को पार्टी की जगह गेंग (गिरोह) बना दिया गया है। इस जोड़ी का खौफ इतना ज्यादा है कि बीजेपी का पितृ संगठन आरएसएस मोदी-शाह की पसंद से इतर जिसको भी पार्टी की कमान सौंपने की सोचता है उसी की चड्डी का नाड़ा टूटने लगता है। कहावत है लोहे को लोहा ही काटता है तो तय है कि गुजरात लाॅबी को निपटाने के लिए गुजरात का ही कोई ऐसा बंदाबैरागी चाहिए जिसको इस गुजरात लाॅबी से कोई पुराना हिसाब चुकता करना हो और ये गुजरात लाॅबी के भीतर भी कहीं न कहीं उसका खौफ़ जदा हो। आरएसएस के तरकश में एक ही ऐसा तीर है जो ना केवल इस गुजरात लाॅबी से बीजेपी को मुक्ति दिला सकता है बल्कि सही मायने में लकवाग्रस्त  हो चुकी पार्टी में जान फूंक कर फिर वही पार्टी विथ डिफरेंट की पोजिशन पर लाकर खड़ा कर सकता है। उस शक्स का नाम है संजय जोशी। जिसके अच्छे खासे समर्थकों का जमावड़ा पार्टी के भीतर मौजूद है। मगर आरएसएस भी कहीं शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया, नितिन गडकरी के नाम उछाल कर मोदी-शाह की पसंद के धर्मेंद्र प्रधान, भूपेन्द्र यादव, मनोहर लाल खट्टर से मुर्गे लड़ा कर मजे ले रहा है और एक खूंट में बैठकर संजय जोशी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।

मोदी-शाह के दौर में आरएसएस के आगे क्यों सरेंडर हुई बीजेपी, लोकसभा से  उपराष्ट्रपति चुनाव तक पूरी बदल गई - bjp surrender to rss in era of modi-shah  everything changed from lok

राजनीतिक गलियारों में इस बात की कानाफूसी हो रही है कि आरएसएस की नजरों के तारे नितिन गडकरी को निपटाने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी उनके मंत्रालय की फाइलों को खखांलने लगी है क्योंकि एक बार फिर से गडकरी को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने या फिर मोदी के विकल्प बतौर प्रधानमंत्री बनाने के पत्तों को संघ ने फेंटना शुरू कर दिया है। आरएसएस और मोदी-शाह के बीच चल रही रस्साकशी में फंस कर नितिन गडकरी ऊंची कुर्सी पर बैठेंगे या फिर बलि का बकरा बनकर सलाखों के पीछे बैठकर चक्की पीसिंग करेंगे ये तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में ही है । नितिन गडकरी ने बीते दिनों कहा भी है कि पैसे देकर मेरे खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। गत दिनों सुप्रीम कोर्ट में ऐथॅनाल को लेकर दायर की गई याचिका में नितिन गडकरी के लड़कों की कंपनी को घसीटने की चर्चा आम हो चली थी।

PM Modi@75: नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था ने कैसे भरी रफ्तार,  किस सेक्टर में किया है कमाल | PM Narendra Modi How Indian economy gained  momentum during his tenure

नरेन्द्र मोदी का 75 साल पूरा करना अब उनको ही डराने लगा है कारण उन्होंने जिन्हें 75 साल पूरा करने पर बीजेपी के मार्गदर्श मंडल में बैठाया है उन्होंने अपने बगल में एक खाली कुर्सी रख छोड़ी है नरेन्द्र मोदी के लिए। बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी तो खुलकर नरेन्द्र मोदी को मार्गदर्शक मंडल की खाली कुर्सी पर बैठने का न्यौता दे रहे हैं मगर वहां बैठे वरिष्ठों द्वारा कहीं मुड़थपड़ी न खेली जाने लगे इससे डर कर मोदी बिदकते हुए दिख रहे हैं। संघ अपने शताब्दी वर्ष में एक बार फिर सत्ता के त्रिशूल को अपने हाथों में लेकर एक दूसरी लाइन पर चलना चाहता है। सत्ता त्रिशूल का वर्तमानी मतलब है मोदी की सत्ता, बीजेपी और राज्यों के पर्ची मुख्यमंत्रियों की सत्ता। जो आज की तारीख में मोदी-शाह की मुठ्ठी में कैद है। खबर तो यह भी कहती है कि कि संघ त्रिशूल का एक शूल (केंद्र की सत्ता) मोदी को देने के लिए तैयार है क्योंकि वह जानता है कि बैसाखी के सहारे चलने वाली सत्ता को वह जब चाहेगा लंगड़ी मार कर गिरा सकता है। मगर बीजेपी की कमान वह पूरे तरीके से अपने हाथ में लेना चाहता है। कहने को तो संघ ध्यान भटकाने के लिए कहता रहता है कि पार्टी का अध्यक्ष चुनना बीजेपी का काम है हम तो केवल सलाह देते हैं। मोदी-शाह की जोड़ी लम्बे समय से टार्च जला कर अध्यक्ष ढ़ूढ़ रही है लेकिन संघ की सलाह के अंधियारे या कहें भारी भरकम उजियारे से मोदी-शाह को अध्यक्ष ढ़ूढ़े नहीं मिल रहा है। मोदी-शाह जिन नामों को लेकर संघ के पास सलाह लेने जाते हैं संघ उन नामों को एक सिरे खारिज करके अपनी तरफ से कुछ नाम बतौर सलाह रख देता है। ये छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल लगाने वाले खेल को लम्बे समय देश देख रहा है। वैसे अब इस सांप-छछूंदर के खेल का पटाक्षेप करते हुए संघ प्रमुख को अपने तरकश के अमोघ तीर (संजय जोशी) को सामने रख देना चाहिए।

RSS Vyakhyan Mala: संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर हुआ है और इसकी  सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है - डॉ. मोहन भागवत - India Post News

संघ के फ्लैशबैक में झांकियेगा तो पता चलता है कि संघ अपने 3 दर्जन से ज्यादा अनुशांगिग संगठनों को अपनी विचारधारा के अनुसार चलाता है और उन संगठनों में जो भी अपनी उपयोगिता खो देता है उसे जोंक की तरह से उपयोग करने के बाद छोड़ देने या कहें किनारे लगाने से परहेज नहीं करता है। इसके सबसे  सटीक उदाहरण के तौर पर विश्व हिंदू परिषद के तात्कालिक अंतरराष्ट्रीय महासचिव गुजरात से आने वाले प्रवीण भाई तोगड़िया को पेश किया जा सकता है। कैसे उन्हें एक झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। कैसे आडवाणी को किनारे लगाया गया यह भी सभी ने देखा है। बीजेपी के भीतर मोदी-शाह को लेकर उठ रहे बगावती स्वर भले ही वे अभी फुसफुसाहट की तरह सुनाई दे रहे हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फेल हो रही भारत की विदेश नीति, कूटनीति, अर्थनीति, राजनीति, सुरसा के मुंह माफिक पसर रही बेकारी, बेरोजगारी, मंहगाई, संगठन में सत्ता लोलुपता के चलते आयातित किये गये चरित्रहीन नेताओं से पार्टी विथ डिफरेंट की छबि पर लग रहे दाग-धब्बों से लगता है कि अब संघ के लिए नरेन्द्र मोदी और अमित शाह अनुपयोगी हो चुके हैं और संघ अब उनसे पिंड छुड़ाना चाहता है। यह अलग बात है कि मोदी-शाह बेताल की भांति विक्रम (संघ) के कांधे से उतरे के लिए तैयार नहीं हैं।

Narendra Modi BJP Parliamentary Party Meeting Update | MP Rajasthan  Chhattisgarh CM Face | दिल्ली में BJP संसदीय दल की बैठक: पीएम बोले- मोदी जी  नहीं मोदी कहिए, तीन राज्यों में जीत

इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि खबर है कि निखालिस संघ-बीजेपी की विचारधारा पर चलने वाले बीजेपी के 3 दर्जन से अधिक सांसद मोदी को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। यह बात दीगर है कि संघ की समझाईस के कारण वे आवाजें हलक से बाहर नहीं निकल रही हैं। ध्यान दीजिए 2019 में जो मुरली मनोहर जोशी नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए आशीर्वाद दे रहे थे वो आज मुखर होकर नरेन्द्र मोदी को मार्गदर्शक मंडल में लाने के लिए मोर्चा खोल चुके हैं। आखिर मुरली मनोहर जोशी में इतनी हिम्मत आई कहां से ? जाहिर है इसके पीछे संघ का सपोर्ट है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल होने पर जिस तरह से नरेन्द्र मोदी संघ और सरसंघचालक के कसीदे पढ़ रहे हैं उससे यही संदेश निकल रहा है कि नरेन्द्र मोदी अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपना आखिरी दांव चल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में यह भी भूल जाते हैं कि पिछले 11 सालों से तो वे ही भारत के भाग्य विधाता बने हुए हैं तो फिर देश के भीतर घुसपैठियों का आना किसकी शह पर हो रहा है ? क्या इसके लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं ? और अगर हैं तो वे आज तक कुर्सी पर कैसे बैठे हुए हैं ? क्या मंत्रीमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी के सिध्दांत पर खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या उन्हें घुसपैठ की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए.? या फिर ये विशुद्ध रूप से जुमलेबाजी है और अगर यह जुमलेबाजी है तो सर्वाधिक शर्मनाक और शर्मशार करने वाली जुमलेबाजी है।

OPINION: 1982 में हुई पहली मुलाकात और भारतीय राजनीति में ऐसे जोड़ी नंबर 1  बन गए मोदी-शाह - News18 हिंदी

लगता है कि गुजराती जोड़ी का तरकस खाली हो चुका है और उसने आखिरी हथियार के रूप में रथ का पहिया उठा लिया है और रथ के पहिये से युद्ध नहीं जीता जाता है वह भी तब जब सामने से ब्रह्मास्त्र चल रहे हों। नरेन्द्र मोदी की बाॅडी लेंग्वेज बताती है कि अब उनका औरा अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर चुका है। मोदी-शाह की अंतिम जीवन दायनी बिहार का विधानसभा चुनाव है। जीते तो नैया पार वरना बिहार का चुनाव ताबूत में आखिरी कील साबित होगा। वैसे अब मोदी-शाह का औरा खत्म करने के लिए विपक्ष की कतई जरूरत समझ में नहीं आती क्योंकि बीजेपी के भीतर ही मोदी-शाह के खिलाफ विपक्ष जन्म ले चुका है और यही कारण है कि आज तक बीजेपी संसदीय दल की बैठक नहीं बुलाई गई है और न ही बीजेपी के संसदीय दल ने नरेन्द्र मोदी को आज तक अपना नेता चुना है। भारत के भीतर जिस पार्टी को "सिध्दांतवादी पार्टी" कहा जाता था वह भारतीय जनता पार्टी 2014 के बाद से न तो "पार्टी विथ डिफरेंट" रही न ही अब उसके पास ऐसे प्रभावशाली प्रवक्ता हैं जिन्हें लोग सुनना पसंद करते थे क्योंकि वे तथ्यों के साथ अपनी बात रखते थे लेकिन आज के प्रवक्ता फूहड़बाजी के अलावा कुछ करते ही नहीं हैं इसे भाजपा का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। जिसका अह्सास मोदी-शाह को बखूबी हो गया है और इसी की घबराहट को उजागर करती दिख रही है मोदी-शाह की बाॅडी लेंग्वेज !


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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October 12, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 28

अपना गला बचाने नायक को बनाया खलनायक

अपना गिरेबां भूल चिंटू भी लगाने लगे आरोप

केंद्र सरकार ने रद्द किया सोनम वांगचुक के NGO का विदेशी फंडिंग लाइसेंस,  लद्दाख हिंसा के बाद लिया एक्शन – Money9live

सत्ता का चरित्र ही ऐसा होता है कि वह अपनी घिनौनी करतूतों का ठीकरा दूसरे के सिर पर फोड़ता है । और यही एक बार फिर लद्दाख में किया जा रहा है। लद्दाख के लोगों की जायज मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने के बजाय उन पर दमनात्मक रवैया अपनाया जा रहा है। पर्यावरणविद सोनम वांगचुक पर हिंसात्मक आंदोलन के लिए देशद्रोह का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर जैन-जी को और हवा दी जा रही है जो कहीं सरकार पर ही भारी ना पड़ जाए ! सोनम वांगचुक के एनजीओ स्टूडेंट एज्युकेशन एंड कल्चरल मूवमेंट आफ लद्दाख का विदेशी फंडिंग लाइसेंस यह कह कर रद्द कर दिया गया है कि उन्होंने विदेशी दान लेने के लिए विदेशी अंशदान विनियमन एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया है जिस पर वांगचुक का कहना है कि हमें विदेशी फंडिंग की जरूरत ही नहीं है तो हमने लाइसेंस नहीं लिया। है न कितनी हास्यास्पद बात कि जो लाइसेंस ही नहीं लिया गया सरकार उस लाइसेंस को रद्द कर रही है तो सरकार को बताना चाहिए कि वह कौन सा लाइसेंस रद्द कर रही है.? इसी तरह से सीबीआई ने वांगचुक की एक संस्था हिमालयन इंस्टिट्यूट आफ अल्टरनेट लद्दाख (HIAL) पर विदेशी चंदा लेने वाले कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए जांच शुरू की है। पहले ये जांच 2022 से 2024 तक की करनी थी लेकिन अब उसमें 2020 और 2021 भी जोड़ दिया गया है। कहा जा रहा है कि सीबीआई शिकायत से बाहर जाकर दस्तावेज मांग रही है। सरकार ने HIAL को दी गई जमीन की लीज को यह कहते हुए रद्द कर दिया है कि लीज की रकम जमा नहीं की गई है जबकि वांगचुक कह रहे हैं कि उनके पास दस्तावेजी साक्ष्य हैं जिसमें उन्हें जमीन बिना लीज के देने का उल्लेख है। लद्दाख में इनकम टैक्स नहीं लगने के बाद भी वांगचुक इनकम टैक्स भर रहे हैं इसके बाद भी उन्हें इनकम टैक्स के नोटिस दिये जा रहे हैं।

ये Gen Z- जेन जी क्या है…? – Karmveer

GEN - Z एक वैश्विक नामाकरण है। इसका मतलब है वह पीढ़ी जिसने डिजिटल युग में ही आंखें खोली हैं। इस पीढ़ी को यह पता नहीं है कि राजनीतिज्ञों का चरित्र ही जन्मजात दोगला होता है ! वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाकर झूठ बोल सकते हैं और बाद में बड़ी बेशर्मी के साथ किये गये वादों को जुमला करार भी देने से नहीं चूकते हैं । GEN-Z पीढ़ी नेताओं की कही गई बात को सच मानकर चलती है और जब वे पूरा नहीं होती हैं तो वह उसे वादाखिलाफी मानती है। उन वादों को पूरा कराने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। 2014 से बीते 10 सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव दर चुनाव अपनी कुर्सी बरकरार रखने के लिए इस पीढ़ी को चांद से तारे तोड़कर लाने के सब्जबाग दिखाये। आज अब जब 11 बरसों में उनकी आकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाई। बेकारी बेरोजगारी चरम पर है जो कि सरकार की वादाखिलाफी का ही परिणाम है और सरकार अगर अपनी वादाखिलाफी का समाधान दमनात्मक रवैया अपना कर करेगी तो युवा पीढ़ी का आक्रामक होना स्वाभाविक है और वह भी तब जब सरकार गांधीवादी तरीके से किये जा रहे आंदोलनों पर अंध-मूक-बधिर बनी रहती है। लद्दाख, देहरादून, कर्णप्रयाग, बैंगलुरू में युवाओं ने सड़क पर उतर कर अपनी मांगों को लेकर आंदोलनात्मक रवैया अख्तियार कर लिया है। खबर है कर्नाटक की सिध्दारमैया सरकार को छोड़ कर बाकी सरकारें आंदोलनकारी युवाओं पर दमनात्मक कार्रवाई कर रही हैं जबकि कर्नाटक गवर्नमेंट ने युवाओं की मांगों से अपनी सहमति जताते हुए उसके समाधान की बात कही है। उत्तराखंड की गलियों में तो "वोट चोर गद्दी छोड़" की तर्ज पर "पेपर चोर गद्दी छोड़" के नारे लगा कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का इस्तीफा मांगा जा रहा है। लद्दाख की वर्तमान परिस्थितियों के लिए केन्द्र सरकार के साथ ही कुछ हद तक सुप्रीम कोर्ट भी जिम्मेदार है।

Sonam Wangchuk NGO FCRA License Suspended: सोनम वांगचुक पर केंद्र का बड़ा  एक्शन, लेह हिंसा के बाद रद्द किया NGO का विदेशी फंडिंग लेने वाला लाइसेंस

5 अगस्त 2019 की सुबह संसद से एक ऐसा ऐलान किया गया जिसने एक पूरे राज्य की पहचान और लोकतांत्रिक संरचना को बदल कर रख दिया। 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम पारित करते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य के दो टुकड़े कर उन्हें यह कहते हुए केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया कि इससे आतंकवाद खत्म होगा, विकास की रफ्तार बढ़ेगी, जनता मुख्यधारा से जुड़ेगी लेकिन इन 6 सालों में ना तो इस क्षेत्र में आतंकवाद खत्म हो पाया है न विकास रफ्तार पकड़ पाई है और ना ही जनता को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए सार्थक पहल की गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार कहा कि दोनों केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा उचित समय पर बहाल कर दिया जायेगा लेकिन 6 बरस में भी प्रधानमंत्री का उचित समय अभी तक नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आर्टिकल 370 हटाये गये मामले की सुनवाई करते हुए आर्टिकल 370 हटाये जाने को न्याय संगत माना साथ ही जम्मू-कश्मीर में सितम्बर 2024 विधानसभा चुनाव कराने तथा जल्द राज्य का दर्जा दिये जाने का आदेश दिया लेकिन इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य का दर्जा दिये जाने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की और यही वह वजह है जहां न्यायपालिका की भूमिका सवालों के घेरे में आती है तथा यही केन्द्र सरकार को अनंतकाल तक मामले को लटकाये रखने का औजार बन गया। लद्दाख को तो उसकी विधानसभा भी नहीं मिली।

eiting the said direction the application states : even after passing of 10 months the order dated 11.12.2023 till date the status of statehood of Jammu and Kashmir has not yet been restored which is gravely affecting the rights of the citizens of Jammu and Kashmir and also vailating the idea of federalism. Court has been further told that this issue is of grave urgency and importance as Jammu and Kashmir held the Legislative election in three phases to elect 90 members of the Jammu and Kashmir Legislative Assembly after a period of 10 years. The results of the said elections are to be pronounced on 8.10.2024.

Press Release:Press Information Bureau

केंद्र सरकार द्वारा गठित की गई डी-लिमिटेशन कमेटी ने भी मार्च 2022 में अपनी रिपोर्ट सम्मिट कर दी फिर भी वही ढाक के तीन पात होने से लोगों का केंद्र सरकार से भरोसा उठता चला गया। कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी पार्टी भी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने में की जा रही हीलाहवाली करने पर मोदी सरकार पर जानबूझकर टालने का यह कहकर इल्जाम लगा रही हैं कि दिल्ली लम्बे समय तक अपना नियंत्रण बनाये रखना चाहती है।

Congress President Mallikarjun Kharge at a presser in Pune said 'Amit Shah claims the Congress wants to bring back Article 370, but who in the Congress ever states this ? Seconding Mr. Kharge' s position, J&K PCC President Tariq Hamid Karra said the only thing left to demand after the Supreme Court verdict on Arctic 370 was statehood for J&K. The top court had in December 2023 upheld the abvogation of Article 370, which had given special status to the erstwhile state. Former Chief Minister and peoples Democratic Party (PDP) President Mehbooba Mufti said 'People reposed faith in this government and gave it a huge mandate. People's sentiments are attached to Article 370. The resolution passed by NC was vague and not clear on the restoration of Article 370. The NC and Congress government should clarity their stand. Indian Express 2025 January - The Prime Minister said that he fulfils the promises he makes and that one should simply believe in him he even referred to the z-morth tunnel as an example of his dedication to the people.

Breaking News: Amit Shah Announces ...

Supreme Court seeks Union's reply in plea seeking statehood for Jammu and Kashmir - solicitor General Tushar Mehta has told court that peculiar considerations emerge from Jammu and Kashmir that have to be considered by the government. The Supreme Court while hearing an application seeking appropriate devections to the Union of India for restoration of the statehood of Jammu and Kashmir in a time bound manner told the applicants before it that ground rectifies cannot be ignored. You cannot ignore what has happened in pahalgam ground realities have to be considered. CJI BR Gavai has said.

इन दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का शासन राज्यपाल के जरिए केंद्र के द्वारा चलाया जाता है। यहां पर भी बिहार जैसे राज्यों की तरह बेकारी बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है। विकास के नाम पर बड़े प्रोजेक्ट घोषित तो होते हैं लेकिन जमीन पर कुछ नहीं दिखाई देता है। इंटरनेट आये दिन बंद कर दिया जाता है। नेताओं की नजरबंदी भी आम है। पत्रकारों पर नियंत्रण रहता है। यानी लोकतांत्रिक अधिकारों पर पाबंदी रहती है। सरकार के कथन राज्यों को चिढ़ाते रहते हैं कि शांति बहाल हो रही है क्योंकि हर महीने सुरक्षाकर्मियों, नागरिकों की मौत की खबरें आती रहती हैं। लगता तो यही है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा एक रणनीति के तहत चुनावी जुमला भर है। एक तो बिना किसी सहमति के एक राज्य को दो टुकड़ों में बांट कर अपने अधीन कर लिया गया ऊपर से यह भी कह दिया गया कि फिर से पूर्ण राज्य की बहाली की जायेगी और एक लम्बे इंतजार के बाद भी वादापरस्ती न हो और जनता गांधीवादी तरीके से सरकार को याद दिलाये फिर भी सरकार कुंभकर्णी निद्रा में बनी रहे तो जनता क्या करे.? लद्दाख की जनता अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत ही तो मांग रही है कि उसे संविधान की 6 वीं सूची में शामिल किया जाय। पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाय जिससे वह अपने शासक को चुन सके।

लद्दाख में शांतिपूर्ण आंदोलन हिंसक रुप ले लिया। पूर्ण राज्य का दर्जा देने  और इस क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग अचानक से तेज ...

Does the Prime Minister have any intention of upholding his "MODI KI GUARANTEE" it not, why did he make the promise in the first place ? Ten years after he first took office, why is this issue still pending he asked. Ramesh also said that since the dissolution of the BJP. PDP government in the erstwhile state of Jammu and Kashmir in 2018, the people of Ladakh have had no representative government at the state level. On August 5, 2019, by converting Ladakh into a separate Union Territory without a legislative assembly, the MODI Sarkar closed the possibilities of any self government for the people of Ladakh. What vision did the Prime Minister have for Ladakh when he declared it a separate Union Territory ? Were the people of Ladakh ever consulted during the development of this vision, be asked. Ramesh also alleged that under Prime Minister Modi's governance, India has lost prime pasture land in the ehangthang plains in the north of Ladakh to Chinese encroachment. In addition to a hational security erisis this is also a serious socio-economic issue for the nomads of Ladakh. The Prime Minister, however, gave a clean chit to China on June 19 th 2020, at the all-party meet on China, when he declared that "not a single Chinese soldier had crossed over into Indian territory" he said, asking whether the people of Ladakh are lying while claiming that their lands had been encroached upon by the Chinese PLA. Ramesh elaimed that the proposed Ladakh lndustrial land allotment policy 2023 has suggested single window elearance committees that have only government official and Industry representative. There are no council members, civil society groups and panchayat representatives in these committees, he claimed. The document does not even layout the environmental or cultural criteria for considering an Industrial project nor does it provide for any public consultation.... In a sensitive ecosystem such as Ladakh in a region populated by nomadic tribes and other sensitive demographic groups. What is the cynical motive that underlines this proposed Land Allotment policy ? Is it yet another attempt by the Prime Minister to favour his Industrilist friends at the cost of the people, Ramesh asked. Using the hashtag (chuppi todo pradhan mantriji)

लद्दाख: सोनम वांगचुक की गिरफ़्तारी पर लोगों की बढ़ती नाराजगी

इसी मांग को लेकर ही पर्यावरणविद सोनम वांगचुक क्लाइमेट फास्ट कर रहे हैं जिसमें वह 15 दिनों से 15 डिग्री तापमान में बर्फ पर बैठकर केंद्र सरकार से लद्दाख को संविधान की 6 वीं अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की गुजारिश कर रहे हैं। इसके पहले भी वांगचुक ने 21 दिन और 15 दिनों की भूख हड़ताल की थी। देखा जाय तो लद्दाखवासियों की मांग संविधान सम्मत है क्योंकि यहां की 95 फीसदी आबादी जनजातीय है इसीलिए वे संविधान की 6 वीं अनूसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं ताकि विशेष स्वायत्तता मिल सके और वहां की संस्कृति, पारिस्थितिक और जनजातीय पहचान अक्षुण्ण रह सके। मगर वादा करने के बाद भी मोदी सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी और बकौल जयप्रकाश नारायण "जिंदा कौमें 5 साल इंतजार नहीं करती" और जैन-जी तो बिल्कुल भी नहीं करता तो फिर वही हुआ जिसका अंदेशा था । वांगचुक ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने की अनुमति मांगी तो नहीं दी गई जिससे दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी। यह लोकतंत्र पर भी सवाल खड़ा करता है। मोदी सरकार की टालमटोल वाली नीति से लद्दाखवासी खासतौर पर युवा पीढ़ी खुद को लोकतंत्र से बाहर समझने लगी है जबकि वहां का युवा केवल वोटर भर नहीं बल्कि नीति निर्माण में भागीदारी चाहता है।

Vilent protests breakout at BJP office in Ladakh's Leh amid shutdown seeking statehood. Violent protests erupted outside the BJP office in Leh town during a shutdown call issued by the Leh Apex Body (LAB) in the Union Territory (UT) of Ladakh over the Centre's delay to holl result oriented talks over several long pending demands, which include granting statehood and Sixth Schedule status to the region. Leh's District Magistrate has imposed restrictions under section 163 of the Bhartiya Nagrik Suraksha Sanhita (BNSS) 2023...... which bars assembly of more than four people in the region--citing possible disturbance to public peace and danger to human life. Preliminary reports a suggested that supporters of LAB, an amalgam of religious social and political organisations, assembled outside the BJP office in Lah to register their protest over the centre not resuming talks with representatives of Ladakh over a series of demands, with statehood and sixth schedule status topping the list.

Patriot card backfires on Ladakh BJP MP ...

केंद्र सरकार जिस तरह से लद्दाख और लद्दाख की आवाज उठाने वालों पर क्रूरतापूर्ण व्यवहार कर रही है वह राष्ट्रीय सुरक्षा, पारिस्थितिक और सामाजिक न्याय तीनों के लिए खतरनाक संकेत है। लद्दाख में लम्बे समय से चल रहे संवैधानिक संघर्ष का निष्कर्ष यही है कि भारत के लोकतंत्र में जनता की राय के बिना किसी भी राज्य का दर्जा छीना जा सकता है, संविधान बदला जा सकता है। अदालत भी बिना समय सीमा तय किये आदेश देकर न्यायालय होने का बस अह्सास करा सकती है। जनता को अगर अपने हक के लिए भूख हड़ताल-आमरण अनशन आदि करना पड़े तो इसे लोकतंत्र नहीं बल्कि इसे एक तरह का धीमी गति का प्रशासकीय आपातकाल कहा जा सकता है । मोदी सरकार जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विदेश नीति, कूटनीति में लगातार फेल हो रही है। अमेरिका टेरिफ वार के जरिए चौतरफा हमला कर रहा है। भारत के पड़ोसी देशों में जिस तरह की उठापटक हो रही है। भारत के अपने पड़ोसियों से जिस तरह के संबंध हैं उसने मोदी सरकार की नींद तो उड़ाई हुई है ही उसमें तड़के का काम कर रही है भारत की अंदरूनी राजनीति। माना जा रहा है कि इसी सबसे पार पाने के लिए मोदी सत्ता किसी भी हद तक जा सकती है। उसका नजारा एकबार फिर लद्दाख में दिखाई दिया जहां मोदी सत्ता ने अपनी कुर्सी को बनाये रखने के लिए सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया है। और सोनम वांगचुक को बदनाम करने के लिए ना जाने क्या - क्या ट्रोल किया जा रहा है। जबकि मोदी सत्ता के दौरान ही सोनम वांगचुक को 2016 में रोलेक्स अवाॅर्ड फाॅर एंटरप्राइज, 2017 में ग्लोबल अवाॅर्ड फाॅर सस्टेनेबल आर्किटेक्चर तथा 2018 में रमन मेग्सेसे अवाॅर्ड से सम्मानित किया गया है इसी तरह से कांग्रेस सत्ता के दौरान भी उन्हें 2008 में रियल हीरोज अवाॅर्ड एवं 2002 में अशोक फेलोशिप फार सोशल एंजरप्रेन्योरशिप दिया गया था। सोनम वांगचुक की सोच पर ही 3 इडियट्स फिल्म बनाई जा चुकी है। इंजीनियर, इनोवेटर और समाजसेवी के तौर पर भी वांगचुक का बेमिसाल योगदान है।

आज से एक देश, एक विधान, एक निशान- देश के नक्शे पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो  नए केंद्र शासित प्रदेश - Jammu and Kashmir and Ladakh two new union  territories on map

2019 में जब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था तब सोनम वांगचुक ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शुक्रिया अदा करते हुए कहा था कि लद्दाख की जनता द्वारा एक लम्बे वक्त से देखा गया सपना पूरा हो गया है। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि 30 साल पहले अगस्त 1989 में लद्दाख के नेताओं ने लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाये जाने की मांग को लेकर आंदोलन की शुरुआत की थी। यह भी बड़ा गजब का संयोग है कि जब 1989 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिए सोनम वांगचुक के पिता सोनम वांगयाल की अगुवाई में आंदोलन हुआ था तब पुलिस की गोली से 3 लोग मारे गए थे और 36 साल बाद जब केंद्र शासित प्रदेश को पूर्ण राज्य बनाने के लिए सोनम वांगचुक के नेतृत्व में आंदोलन हुआ तो 24 सितम्बर 2025 को एकबार फिर से पुलिस की गोली ने 4 लोगों की इहलीला समाप्त कर दी। यह एक ऐसी परिस्थिति है जो आंदोलन की दिशा और लम्बे समय से चले आ रहे आंदोलन को लेकर जब वो हिंसा में प्रवेश कर जाता है तो आंदोलन भारत में चल नहीं पाता है वो खत्म हो जाता है तो क्या एक लम्बे समय से चले आ रहे आंदोलन का पटाक्षेप ऐसी हिंसा से हो सकता है या फिर एक लम्बे वक्त से चले आ रहे आंदोलन में हिंसा के जरिए ही उस जैन-जी के संघर्ष को पनपाया जा सकता है जो नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में नजर आया। ये दो बिल्कुल अलग - अलग रास्ते हैं आंदोलन को खत्म करने की दिशा में ले जाने की और आंदोलन को आगे बढ़ाने की दिशा में।

Jammu Kashmir Laddakh, Know History Of This State Which Is Now Union  Territories - Amar Ujala Hindi News Live - चर्चा में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख:आइए  जानते हैं इसका इतिहास और राजनीतिक ...

मौजूदा परिस्थितियों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तौर पर पडोसी देशों, अमेरिका को लेकर जिन मुश्किल हालातों से भारत गुजर रहा है उससे क्या अब राजनीतिक सत्ता किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है ? इसीलिए लद्दाख (लेह) का पूरा ठीकरा सोनम वांगचुक पर फोड़ा गया है। यह भी कहा गया कि यहां पर नेपाली, सोशल एक्टिविस्ट और एडवोकेट सक्रिय हैं। पैसा भी बाहर से आ रहा है। यानी पडोसी देशों में हो रही तमाम परिस्तिथियों को लद्दाख (लेह) से जोड़ने की कोशिश मोदी सत्ता ने अपने तौर पर की है। लद्दाख को लेकर भारत की अंदरूनी राजनीति उबाल पर है इसीलिए लद्दाख में इंटरनेट को रोक दिया गया है, कर्फ्यू लगा देने से सन्नाटा पसरा पड़ा है। इस सन्नाटे के बीच से सवाल निकलता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट के तहत जो गिरफ्तारी सोनम वांगचुक की हुई है क्या वह पहली और अंतिम गिरफ्तारी है या यह एक शुरुआत है ? अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका को लेकर भारत की जो विदेश नीति और कूटनीति चल रही है वो आखिरी मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है क्या ? भारत की अंदरूनी राजनीति जो छात्र, युवाओं और जैन-जी के जरिए देश के राजनीतिक घटनाक्रमों को प्रभावित करने की दिशा में बढ़ने के लिए चल तो रही है लेकिन अभी तक सड़कों पर नजर नहीं आ रही है क्या घरेलू राजनीति उसे आगे बढ़ायेगी या फिर राजनीतिक सत्ता उसे रोक देगी ?

इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि भारत की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों ने भारत के भीतर उस आंदोलन की शक्ल को ही बदल डाला है जो इससे पहले राजनीतिक दलों के जरिए चला करते थे । क्या उसकी कमान कहीं और है, रास्ते कहीं और से निकल रहे हैं, मदद कहीं और से आ रही है ? यही वो परिस्थिति है जो ताकतों और डीप स्टेट को लेकर दुनिया भर में बहस का हिस्सा बन रही है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 24, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 27

जुआरी की जेब का फटे नोट की तरह आखिरी दांव लगाने जैसा निकला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जीएसटी को लेकर दिया गया राष्ट्र के नाम संदेश !

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्र के नाम संदेश - Ravivar Delhi

जब भी ये खबर आती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्र के नाम संदेश देने वाले हैं तो पूरे देश में एक अजीब सी सनसनी फैल जाती है कि दूरदर्शन पर आकर प्रधानमंत्री मोदी क्या घोषणा करने वाले हैं। अब वे क्या बंद करने की घोषणा करेंगे या किस बात के लिए ताली-थाली, शंख-घडियाल बजाने को कहने वाले हैं या फिर दिया-बाती-मोमबत्ती जलाने को कहने वाले हैं। देशवासियों के जहन में ये डर नोटबंदी के बाद से ज्यादा खौफजदा हो गया है। ऐसे ही हालात 21 सितम्बर को देशभर में पसर गये जब खबर आई कि शाम 5 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशवासियों को संबोधित करने वाले हैं। मगर अपने 21 मिनट के भाषण में ऐसा कुछ नहीं हुआ और देशवासियों ने राहत की सांस ली। अब्बल तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस बात को राष्ट्र के नाम संबोधन का नाम देकर कह रहे थे कहने के लिए आना ही नहीं चाहिए था क्योंकि जिस बात का जिक्र प्रधानमंत्री ने किया उस बात को वे स्वयं 15 अगस्त को लालकिले में दिये गये भाषण में कर चुके थे इसके बाद इसी बात का जिक्र वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन भी कर चुकी हैं। पूरे देश में गली-कुलियों तक में रहने वाले भिक्षाटन करने वाले को भी पता था कि जीएसटी की जो दरें कम की गई हैं वे 22 सितम्बर यानी 21 सितम्बर की आधी रात से लागू होने वाली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब जीएसटी की कम दरों से देशवासियों को रूबरू करा रहे थे तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई हारा हुआ जुआरी अपने जेब में बचाकर रखा हुआ फटा नोट दांव पर बतौर अंतिम बाजी के रूप में लगा रहा है।

BJP MPs Workshop Begins Today in Parliament PM Modi to Be Honored for GST  Reforms | संसद में आज से भाजपा सांसदों की कार्यशाला, PM मोदी को GST सुधारों  के लिये होंगे

30 जून 2017 दिन जुमेरात (शुक्रवार) को आधी रात का वक्त संसद के सेंट्रल हाल में सजी संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी - आज इस मध्य रात्रि के समय हम सब मिल करके देश का आगे का मार्ग सुनिश्चित करने जा रहे हैं। कुछ देर बाद देश एक नई व्यवस्था की ओर चल पड़ेगा। सवा सौ करोड़ देशवासी इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी हैं। जीएसटी की ये प्रक्रिया सिर्फ अर्थ व्यवस्था के दायरे तक सीमित है ऐसा मैं नहीं मानता हूं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो इसे दूसरी आजादी का नाम तक दिया था। और इस दूसरी आजादी का धम्मन सिर्फ और सिर्फ महज आठ साल में ही फूलने लगेगा शायद इसकी कल्पना तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी नहीं की होगी। जिसे यह कह कर लागू किया गया था कि एक देश एक टैक्स वाली जीएसटी सिर्फ अर्थव्यवस्था का प्रतीक भर नहीं है बल्कि यह भारत के लोकतंत्र और भारत के संघीय ढांचे को मजबूत बनाते हुए विकसित भारत की दिशा में उठने वाला एक ऐसा कदम है जो ना सिर्फ रिफार्म है बल्कि भारत की रगों में मुश्किल हालातों से सरलता के साथ देश को चलाने के तौर तरीके हैं। जिसमें खुली भागीदारी देश की जनता की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित दो टैक्स स्लैब वाले जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहा था प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते हुए उसी गब्बर सिंह टैक्स को कई स्लैबों पर दूसरी आजादी कहते हुए थोप दिया। इन आठ सालों में जीएसटी में आधे सैकडा से ज्यादा संशोधन करने पड़े। देश के लघु और मध्य श्रेणी के व्यापारियों के काम धंधे चौपट होते चले गए। और अब जीएसटी की दरों को संशोधित करते हुए दो स्लैबों में समाहित कर दिया गया है और उसमें तुर्रा यह कि इसे रिफार्म का नाम देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए देशवासियों से क्षमा याचना करने के बजाय बचत उत्सव मनाने का बेशर्मी भरा संबोधन देना देशवासियों को पचा नहीं है। देशवासियों से माफी इसलिए कि अब जब इसे बचत उत्सव कहा जा रहा है तो तय है कि मोदी सरकार द्वारा पिछले 8 सालों से जीएसटी का लूट उत्सव मनाया जा रहा था।

New GST Rate: 'किसानों पर पहली बार लगाया गया टैक्स', कांग्रेस ने जीएसटी 2.0  को कहा 'गब्बर सिंह टैक्स' | 56th GST Council Meeting, New GST Rates on on  Car, Health Insurance,

अब ये सवाल कोई नहीं पूछ रहा है कि देश में जीएसटी कौन लेकर आया, कौन है जिसने जीएसटी के जरिए व्यापारियों के सामने मुश्किल हालात पैदा किये, किसने जीएसटी के जरिए देश के रईसों को राहत इस तरह से दी कि टैक्स के मामले में गरीबों और रईसों को एक कतार पर खड़ा कर दिया गया । ऐसा तो महात्मा ने भी कभी  नहीं सोचा होगा। प्रधानमंत्री जब राष्ट्र के नाम संदेश देने सामने आये तो देश के सामने बहुतेरे सवाल थे। किसानों की आय 2014 की तुलना में कम हो चुकी है, लागत बढ़ चुकी है। वह मंड़ियों की पहुंच से दूर हो गया है। उसकी अपनी कमाई उसे मजदूर की कतार में खड़ा कर चुकी है। देश के छोटे और मझोले उद्योग धंधों, व्यापारियों की कमर तो पहले ही नोटबंदी लागू कर तोड़ दी गई थी। नोटबंदी ने पूरे असंगठित क्षेत्र को तहस- नहस करके रख दिया है। नोटबंदी के बाद से एमएसएमई जो डगमगाया वो आज भी ना तो सम्हल पाया है ना ही सम्हलने की स्थिति में आ पा रहा है। देश के भीतर रोजगार को लेकर, उत्पादन को लेकर, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लेकर सरकार ने एक नायाब लकीर खींच डाली है। मुद्रा योजना के तहत 30 - 35 लाख करोड़ रुपये बांट कर कह दिया कि अब किसी को रोजगार की जरूरत नहीं है। हर व्यक्ति खुद का रोजगारी है और दूसरे को रोजगार देने की स्थिति में है। आज तक कोई समझ नहीं पाया है कि रुपया आता कहां से है और जाता कहां है। क्या आरबीआई नोट छाप रहा है और बैंक उसी आधार पर कर्ज दे रहे हैं। देश के अगर 40 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुद्रा योजना का लाभ मिला है तो इसका मतलब यह है कि हर तीसरा व्यक्ति जिसमें नाबालिक हो या 75 पार का सबको इसका लाभ मिला है लेकिन भारत तो आईएमएफ की लिस्ट में बेरोजगारी के क्षेत्र में बड़ी बुरी गति के साथ खड़ा है। आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक यह कहने से चूक नहीं रहे हैं कि भारत तो कर्ज में डूबा हुआ देश है और जल्द ही इसकी जीडीपी से ज्यादा कर्ज हो सकता है। क्योंकि बीते 10 बरसों में भारत पर कर्ज का बोझ डेढ़ सौ लाख करोड़ से ज्यादा बढ़ गया है। 2014 में भारत पर तकरीबन 50 लाख करोड़ का कर्जा था जो आज की स्थिति में 200 लाख करोड़ को पार कर गया है।

मैं देश नहीं झुकने दूंगा.. यही समय है', व्यंग्य धार से लेकर काव्यधारा तक से  सजे हैं मोदी की संघर्षगाथा के पन्ने; पढ़ें.. - PM Narendra Modi Turns 75  Exploring ...

ये कैसी हास्यास्पद स्थिति है कि प्रधानमंत्री एक ऐसा संदेश राष्ट्र के नाम देने सामने आये जो देश के गांव, शहर की बस्तियों से लेकर, पंचायत के समूह के बीच, विधायक, सांसद अपने - अपने क्षेत्र में करते चले आ रहे हैं उसके सामने प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम दिया गया संदेश शायद ज्यादा खोखला और पोपला है। और ये इसलिए है कि जीएसटी लेकर कौन आया ? 5 स्लैबी जीएसटी को क्रांतिकारी कदम किसने कहा ? जीएसटी के 5 क्रांतिकारी कदम महज 8 बरस में ही देश को मुश्किल हालात में ढकेल कर हांफने लगे। इस सच से सरकार इंकार नहीं कर सकती इसीलिए वह 2 स्लैब वाला जीएसटी ले आई। इसके बाद भी शर्माने के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़ी बेशर्मी के साथ इसे अपनी उपलब्धियों के खाखे में जोड़कर ऐलान करते हैं। दूसरी ओर राज्यों को उनके हिस्से की जीएसटी की रकम देने के लिए तरसाया जाता है। भारत किस तरह से टैक्स में समाया हुआ है उसको इस तरह भी समझा जा सकता है। इस साल जो बजट रखा गया है वह कितना सच है या उससे हटकर बड़ी लूट टैक्स के जरिए ही हो रही है । इस साल का बजट 50 लाख करोड़ से ज्यादा का है। इनकम टैक्स से 14 लाख 38 हजार करोड़, कार्पोरेट टैक्स से 10 लाख 82 हजार करोड़, जीएसटी के जरिए 11 लाख 78 हजार बसूले जायेंगे। जीएसटी के जरिए जो पैसा अभी तक बसूला गया है 12 महीने में बसूले जाने वाले 11 लाख 78 हजार करोड़ एवज में यह आंकड़ा सरकार ने जारी किया है - अप्रैल में 2 लाख 36 हजार 716 करोड़, मई में 2 लाख 1 हजार 50 करोड़, जून में 1 लाख 85 हज़ार करोड़, जुलाई में 1 लाख 95 हजार 735 करोड़, अगस्त के महीने में 1 लाख 86 हज़ार करोड़ यानी इन 5 महीने में ही 10 लाख करोड़ से ज्यादा बसूल लिया गया है।

सरकार की कमाई का 5वां हिस्सा ब्याज चुकाने में साफ, सरकार लेगी इस बार 15 लाख  करोड़ कर्ज! - Budget 2025 to whom does govt pay interest and from where it  collect

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता को देव की श्रेणी में रख दिया है तो सवाल ये है कि जो टैक्स जनता से बसूला गया है उससे जनता को राहत और रियायत मिलती है क्या ? टैक्स बसूली से चल रहे देश में किसानों, मजदूरों को कितनी राहत, रियायत दी जा रही है ? हकीकत तो यही है कि सरकार जनता से बसूले गये टैक्स का 80 फीसदी से ज्यादा वह अपने ऊपर ही खर्च करती है। 50 लाख करोड़ के बजट में सरकार का एक्सपेंडीचर ही 39 लाख 29 हजार 154 करोड़ का है। प्रधानमंत्री ने नागरिक देवो भव: का जिक्र करते हुए कहा कि हमने इनकम टैक्स में 12 लाख तक की छूट दी है और जीएसटी की दरें कम कर दी है। यह साल भर में 2.50 लाख करोड़ हो जाता है लेकिन इसका भीतरी सच ये है कि इससे ज्यादा की रियायत तो बतौर बैंको से लिए गए कर्जे को माफ करके कार्पोरेट को दे दी गई है। मंत्रालय के मंत्री से कहा जाता है कि सरकारी तरीके से काम करने के बजाय आप ये बताइये कि इन कामों को कौन - कौन से प्राइवेट सेक्टर कर सकते हैं। और इस दौर में पब्लिक सेक्टर को प्राइवेट सेक्टर के हाथों में सौंपते चला गया। जो राहत रियायत पब्लिक सेक्टर के जरिए जनता को मिलने वाली थी वह प्राइवेट सेक्टर के लाभालाभ में समाहित होती चली गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस हुनर की तो दाद देनी चाहिए कि जिस तबके के सामने संकट होता है वे उसी तबके की वाहवाही यह कह कर करने लगते हैं कि देखिए हमने आपकी हालत ठीक कर दी। देश में 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर कर दिया गया जिसके भीतर का सच ये है कि पीएम की लाभार्थी योजना के आंकडों जोड़ दिया गया है और कहा जा रहा है कि उसके पास घर है, टायलेट है, सिलेंडर है। जबकि देश का सच ये है कि इस तबके की सबसे बड़ी कमाई सरकार द्वारा गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत (बतौर खैरात जैसे) दिया जा रहा 5 किलो अनाज ही है। अगर उस गरीब कल्याण अन्न योजना को खत्म कर दिया जाय तो एक झटके में भूखे मरने जैसी परिस्थिति पैदा हो जायेगी। मिडिल और न्यू मिडिल क्लास की जीएसटी दरों को कम करके वाहवाही की जा रही है।

'स्वदेशी' है आत्मनिर्भर भारत का मंत्र : छोटी-छोटी पहलें जरूरी -

बड़े हुनर के साथ स्वदेशी और आत्मनिर्भरता, मेक इन इंडिया का जिक्र किया गया। मेक इन इंडिया का अंदरूनी सच यह है कि देश की जो टापमोस्ट 30 कंपनियां जरूरतों का सामान बनाती हैं उसमें लगने वाला लगभग 82 फीसदी कच्चा माल चीन से ही आता है। अगर चीन अपने सामानों को भेजना बंद कर दे तो मेक इन इंडिया धराशायी हो जायेगा लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि चाइना को अपना माल खपाने के लिए बाजार चाहिए और दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत उसके लिए एक बाजार ही है। पीएम नरेन्द्र मोदी जब स्वदेशी का जिक्र करते हैं तो लोगों के मन में घृणात्मक भाव पैदा होते हैं। उनको तो महात्मा गांधी का स्वदेशी के पीछे कपास और सूत को काट कर धोती की शक्ल में बुना गया कपड़ा याद आता है जिसे पहन कर उन्होंने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। वहीं पीएम नरेन्द्र मोदी के साथ तो ब्रिटिश कंपनी की लक्जरियश गाड़ी रेंजरोलर का काफिला चलता है। वे तो खुद नख से शिख तक विदेशी वस्तुओं से सजे धजे होते हैं। सेंट्रल विस्टा के निर्माण में भी विदेशी कंपनियों का योगदान था। यहां तक कि सरदार पटेल की सबसे बड़ी प्रतिमा भी चीनी कंपनी ने ही बनाई है। इन सबका जिक्र करना कोई मायने रखता नहीं है कारण यह हुनर सबके पास होता नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास है। राष्ट्रवाद जगाने के लिए नैतिक बल की जरूरत होती है। खुद को उसमें ढालने की जरूरत होती है जो नरेन्द्र मोदी में दूर - दूर तक दिखाई नहीं देता है। अभी ही तो गुजरा है 15 अगस्त। उस दिन भारत का राष्ट्रीय तिरंगा झंड़े की शक्ल में हर हाथों में था वह भी चाइना से बनकर आया है।

मेक इन इंडिया रंग ला रहा है... 10 साल पूरे होने पर PM मोदी ने देशवासियों का  जताया आभार | Make In India ten years completed PM Modi Manufacturing Sector  Semiconductor

लेकिन देखिए पीएम नरेन्द्र मोदी अपने राष्ट्र के नाम दिये गये संदेश में किस हुनर के साथ कह रहे हैं - हमें हर घर को स्वदेशी का प्रतीक बनाना है, हर दुकान को स्वदेशी से सजाना है। गर्व से कहो ये स्वदेशी है, गर्व से कहो मैं स्वदेशी खरीदता हूं, मैं स्वदेशी सामान की बिक्री भी करता हूं। ये हर भारतीय का मिजाज बनना चाहिए। जब ये होगा तो भारत तेजी से विकसित होगा। प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए राष्ट्र के नाम दिये गये संदेश में तो, भारत के ऊपर लगातार बढ़ रहे कर्जे की परिस्थितियों से कैसे निपटा जायेगा, भारत में बढ़ रही बेकारी, बेरोजगारी से कैसे बाहर निकला जायेगा, भारत के भीतर डूब रहे मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर की परिस्थितियों से उबरने की क्या पालिसी है, अब तो अमेरिका के द्वारा H1B  बीजा के रास्ते जिस संकट को खड़ा कर दिया गया है उसका समाधान किस रास्ते पर चलकर होगा, यह सब कुछ समाहित होना चाहिए था। लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक क्षण में सब कुछ इसलिए मटियामेट कर दिया क्योंकि वे जान गए हैं कि वे देश की परिस्थितियों को सम्हाल पाने की स्थिति में नहीं हैं। तो क्या वाकई राष्ट्र के नाम संबोधन आज जीएसटी को लेकर आया है और कल किसी दूसरे विषय पर आ जायेगा। पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहचान चुनावी भाषण के अलावा उपलब्धियों के आसरे खुद को बचाये रखने के लिए राष्ट्रीय संबोधन को एक हथियार के तौर पर उपयोग में लाने की बनकर सामने आई है ! इस दौर में देश के भीतर के सारे संस्थान जिसमें नौकरशाही, ज्यूडसरी, मीडिया आदि शामिल हैं सभी की साख लगातार डूबती चली गई है। इन सारी परिस्थितियों के बीच क्या राष्ट्र के नाम संदेश भी सिवाय भाषण के वह भी गली - कूचे, बस्ती - मुहल्ले में दिये गये भाषण से भी हल्का और सस्ता होगा। प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ताक पर रख कर, देश के सच को छुपाने के लिए ये सारी चीजें नहीं होती हैं मगर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास एक अनोखा हुनर तो है जिसके आगे देश, देश का गौरव, राष्ट्रवाद सभी कुछ बौना हो जाता है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 23, 2025
Social Activities

ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर और ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन, श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल, पटना से समाज को क्या मिला ?

ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर के सभा मंच से दो प्रमुख बातों की घोषणा हुई थी या यूं कहें कि वादे किए गए थे ।

ब्रह्मर्षि चिंतन सम्मेलन सह सम्मान समारोह

चर्चा की शुरुआत मैं आशीष सागर दीक्षित द्वारा लिखी गई पंक्तियों से करना चाहूंगा जो इस प्रकार है:-


छद्म समाजवाद आज, सियासत की भेंट चढ़ गया ।
होर्डिंग वाला नेता भी, राजनीति पढ़ गया ।।
                                                                     चालबाज अवसरों को,  सुनियोजित तलाशते फिरे ।
                                                                     सत्य पथ के सरल पथिक, अब चक्रव्यूह मे घिरें  ।।
झूठ के प्रपंचियों का, छल आग्नेयास्त्र है। 
पीठ पर खंजर उतारना ही, आज समाजशास्त्र  है ।।

उपरोक्त पंक्तियों में ही इस चर्चा का पूरा सार निहित है ।


07 मार्च 2021 को मुजफ्फरपुर के महेश प्रसाद सिंह साइंस कॉलेज के मैदान  में ब्रह्मर्षि  चिंतन शिविर का आयोजन किया गया था जिसमें बिहार के कोने कोने से तमाम ब्रह्मर्षि भाई लोग उपस्थित हुए थे। मैं भी उस सभा का एक हिस्सा था और अपने सैकड़ों मित्रों एवं  सगे संबंधियों के साथ वहां मौजूद था। सभा में उपस्थित सभी ब्रह्मर्षि की आंखों में उस सभा को लेकर तमाम तरह की आशाएं  दिखाई दे रहे थे जैसे मानो कि बिहार में फिर से श्री बाबू का युग लौट गया हो। मैं भी काफी रोमांचित था उस सभा को लेकर और मेरे अंदर भी गजब का उत्साह और उमंग था क्योंकि सभा में उपस्थित सभी लोग उत्साह से लबरेज दिखाई पड़ रहे थे।


ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर के सभा मंच से दो प्रमुख बातों की घोषणा हुई थी या यूं कहें कि वादे किए गए थे ।

Lord Parshuram Jayanti - Onlinepuja.com

पहला वादा था कि यदि कोई विजातीय किसी भूमिहार को तंग करता है या नुकसान पहुंचाता है तो 50 गाड़ियों के काफिले से जाकर उस भूमिहार के मान सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा हेतु समुचित पहल की जाएगी। दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण और  क्रांतिकारी घोषणा यह थी कि गरीब प्रतिभाशाली भूमिहार छात्रों की पढ़ाई के लिए 1 करोड़ का कॉरपस फंड बनाया जाएगा । लेकिन उस घोषणा के आज 4 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ । आश्चर्य की बात यह थी कि सभा में मंच पर उपस्थित लोगों के लिए 1 करोड़ का फंड चंद मिनटों में इकट्ठा कर देना एक तुच्छ बात थी लेकिन वो कहते हैं न कि नियत में ही जब खोट हो तो कुछ भी नहीं हो सकता।

ब्रह्मर्षि  चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर की सभा के मंच पर जितने धनाढ्य लोग मौजूद थे, अगर वो लोग ईमानदारी से चाहते तो एक करोड़ क्या 100 करोड़ का भी फंड गरीब भूमिहार छात्रों के शैक्षणिक उत्थान के लिए मिनटों में इकट्ठा हो जाता जिससे समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन होता जो आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होता और  साथ ही साथ इन राजनैतिक लोगों को ब्रह्मर्षि समाज के एकमुश्त वोट के लिए इतना दर - दर भटकना भी नहीं पड़ता और न ही इतना कठिन परिश्रम और छल प्रपंच करने की भी जरूरत होती । लेकिन धूर्त और  स्वार्थी लोग जहां सामाजिक सिरमौर बनने लगे, उस सभा और समाज का वही हस्र होता है जो आज भूमिहार समाज का हो रहा है।

ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर के उपरांत मुजफ्फरपुर में ही एक भूमिहार समाज की बेटी को एक विजातीय द्वारा बेच दिया गया , और यह खबर आग की तरह फैली लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई । मुजफ्फरपुर में ही एक भूमिहार बेटी को जिंदा जला दिया गया एक विजातीय द्वारा , लेकिन चहुं ओर चुप्पी छाई रही । इसके अलावा अनेकों घटनाएं ऐसी हुई जिनका अलग अलग उल्लेख करना इस संक्षिप्त लेख में संभव नहीं है ।

ऐसी अनेकों घटनाएं इस बात का गवाह हैं कि ये सारे आयोजन केवल समाज की आंखों में धूल झोंकने के उद्देश्य से किए जाते हैं जिसपर मुझे फिर से किसी सज्जन की लिखी हुई पंक्तियां याद आ रही है, जो इस प्रकार है : -

   जो दिख रहा है  सामने, वो दृश्य मात्र है।
   लिखी रखी है पटकथा, मनुष्य पात्र है।।
                                                          नए नियम समय के हैं, कि असत्य सत्य है।
                                                          भरा पड़ा है छल से जो, वही सुपात्र है।।
  है शाम दाम दंड भेद, का नया चलन।
  कि जो यहां कुपात्र है, वही सुपात्र है ।।
                                                          विचारशील मुग्ध हैं, कथित प्रसिद्धि पर ।
                                                          विचित्र है समय, विवेक शून्य मात्र है।।
  दिलों में भेद भाव हो, घृणा समाज में ।
  यही तो वर्तमान, राजनीतिशास्त्र है ।।
                                                          घिरा हुआ है पार्थ पुत्र, चक्रव्यूह में ।
                                                          असत्य साथ और सत्य, एक मात्र है।।

चलते चलते इस चर्चा को विराम देने से पहले एक अपील अपने समाज के बुद्धिजीवियों से करना चाहूंगा कि आप सभी लोग निद्रा से जागिए और अपनी अपनी आँखें खोलिए और इस तरह के प्रपंच से लबरेज आयोजनों की समीक्षा कीजिए ताकि इसपर विराम लग सके और इस तरह के आयोजनों के आयोजनकर्ताओं को  आईना दिखाया जा सके जिससे उनके अंदर एक सकारात्मक परिवर्तन हो सके।

ब्रह्मर्षि विचारक की कलम से 


" राजीव कुमार "

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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